सनातन धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह महापर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में इसे भगवान शिव और माता शक्ति के दिव्य मिलन का प्रतीक नहीं, बल्कि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट होने का पावन दिवस भी माना गया है, जिसकी पूजा सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु जी ने की थी। यह दिन शिव भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय होता है। यही कारण है कि इस दिन भक्त अपने आराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करते हैं, जिनमें रुद्रभिषेक, पूजा-अर्चना, और मनपसंद भोग जैसे सफेद मिठाई, हलवा, दही, भांग, पंचामृत और बेल पत्थर अर्पित करना शामिल है।
जानें, क्यों महादेव को प्रिय है बेल पत्थर और कैसे इससे हुई थी उनकी पीड़ा शांत? 🕉️🔱🔥
बेल पत्र के महत्व को उजागर करने के लिए शिवपुराण में बताया गया है कि जब समुद्र मंथन से निकले विष के कारण संसार पर संकट मंडराने लगा था, तब भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष को गले में धारण कर लिया। इससे उनका शरीर तपने लगा और पूरी सृष्टि में आग जैसी गर्मी फैल गई। इस कारण धरती के सभी प्राणियों का जीवन कठिनाई में आ गया। सृष्टि के हित में विष के असर को समाप्त करने के लिए देवताओं ने शिव जी को बेल पत्र खिलाए, जिससे विष का प्रभाव कम हो गया। तभी से शिव जी को बेल पत्र प्रिय हो गए और उन्हें बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा बन गई। इसीलिए महाशिवरात्रि के चौथे प्रहर में पड़ने वाले ब्रह्म मुहूर्त में काशी के ओंकारेश्वर मंदिर और हरिद्वार के श्री पशुपतिनाथ महादेव मंदिर में 5000 बेल पत्र अर्चना और शिवलिंग गंगाजल अभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। यह पूजा विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त के शुभ समय पर आयोजित की जा रही है, क्योंकि पुराणों के अनुसार, यही वह समय है जब देवता धरती पर आते हैं। सूर्योदय से पहले का समय इस रूप में विशेष माना जाता है, क्योंकि पृथ्वी पर इस दौरान सकारात्मक ऊर्जा का सबसे अधिक संचार होता है।
गंगाजल से शिवलिंग अभिषेक का महत्व 🕉️✨
शास्त्रों के अनुसार, जो भक्त श्रद्धा से शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते हैं, उन्हें भगवान शिव उनसे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। शिव पुराण में वर्णित है कि महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा को धरती पर लाने का संकल्प लिया था। लेकिन गंगा का वेग अत्यधिक तीव्र था, जिसे रोकने के लिए उन्होंने ब्रह्मा जी की सलाह पर शिवजी की तपस्या की। भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर शिवजी ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया, जिससे उनका वेग शांत हुआ। तभी से शिवजी को "गंगाधर" कहा जाता है। आप भी महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर इस विशेष 10008 बेलपत्र अर्चना एवं शिवलिंग गंगाजल अभिषेक अनुष्ठान में भाग लें और शिव की दिव्य कृपा प्राप्त करें।