सनातन धर्म में वेदमाता के रूप में पूजी जाने वाली मां गायत्री सभी कामनाओं की पूर्ति एवं कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं। जिस देवी को सभी वेदों की माता माना गया है, उनकी जयंती ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है कि, गायत्री जयंती पर गायत्री मंत्र द्वारा देवी की पूजा करने से अच्छे स्वास्थ्य, तनाव एवं रोगों से राहत का आशीष मिलता है। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ था। इसके बाद ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की। कहते हैं शुरू में गायत्री मंत्र सिर्फ देवताओं के लिए ही बनाया था। बाद में महर्षि विश्वामित्र ने अपने कठोर तप से आकाशवाणी द्वारा ब्रह्मा जी से गायत्री मंत्र प्राप्त किया। इस मन्त्र का वर्णन सबसे पहले ऋग्वेद में देखने को मिलता है।
वैदिक काल में आचार्य व गुरु, गायत्री महामंत्र को अपने शिष्यों को प्रथम उपदेश के रूप में प्रदान किया करते थे, जिस कारण इसे 'गुरु मंत्र' भी कहा जाने लगा। इस मंत्र का जाप, मनुष्य की बुद्धि को सूक्ष्म और तेजस्वी बनाता है। कहते हैं जो भी व्यक्ति इस मंत्र का ब्रह्म मुहूर्त में जाप करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है, यही कारण है कि इसे 'महामंत्र' भी कहा जाता है। यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है क्योंकि यह मन के साथ विचारों को शुद्ध कर शांति एवं सकारात्मकता को बढ़ावा देता है। इसलिए इस शुभ दिन पर ब्रह्म मुहूर्त में जयपुर के श्री गलताजी सूर्य मंदिर में 51,000 गायत्री मंत्र जाप और गौ सेवा का आयोजन किया जा रहा है जिसमें भाग लेकर गायत्री मां का आशीष पा सकते हैं।