हिंदु धर्म में नाग पंचमी का विशेष महत्व है। यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जिस तरह भगवान शिव को श्रावण माह प्रिय है उसी तरह नाग भी विशेष प्रिय है, इसलिए वे नाग को अपने गले में धारण किए रहते हैं। यही कारण है कि उन्हें ‘नागभूषण’ भी कहा जाता है। इसके पिछे एक अत्यंत ही रोचक कथा है, पुराणों के अनुसार सर्पों को रहने के लिए पाताल लोक दिया गया, किंतु कुछ सर्प पृथ्वी पर आकर उत्पात मचाने लगे थे। जिसे देख भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को उनका अंत करने भेजा। गरुड़ द्वारा सर्पों का अंत देख वासुकी रक्षा की विनती करने महादेव की शरण में गए और उनसे सुरक्षा का वचन प्राप्त किया। इसके बाद वासुकी गरुड़ को रोकने चले गए लेकिन पराजित हो गए और युद्ध में लहूलुहान होने के कारण वासुकी ने महादेव का आह्वान किया। महादेव ने प्रकट होकर गरुड़ को वासुकी पर प्रहार करने से मना किया लेकिन विष्णु जी की आज्ञा को याद करते हुए गरुड़ ने पुनः वासुकी पर आक्रमण किया। इससे महादेव क्रोधित हो गए, फिर गरुड़ ने विष्णु जी का आह्वान किया।
धर्म और वचन के कारण विष्णु जी और महादेव में युद्ध आरम्भ हो गया। जब यह युद्ध रुका तो वासुकी ने महादेव से निवेदन किया कि जिस प्रकार गरुड़ को भगवान विष्णु के वाहन होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है उसी प्रकार सर्पों पर भी महादेव द्वारा थोड़ी कृपा की जाए जिससे भविष्य में कभी नागवंश पर आक्रमण न हो। इसके बाद महादेव ने प्रसन्न होकर वासुकी को अपने कंठ में सदा के लिए धारण किया। वहीं समुंद्र मंथन के दौरान भी इनका जिक्र मिलता है, जब अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन का फैसला लिया था तब वासुकी नाग को ही रस्सी के तौर पर उपयोग किया गया था। समुंद्र मंथन के अलावा वासुकी नाग का वर्णन कई हिंदू धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, दरअसल वासुकी त्रिपुरदाह के समय शिव के धनुष की डोर बनकर अहम भुमिका निभाई थी। मान्यता है कि शिव को समर्पित श्रावण माह में नाग पंचमी के दिन शिव के प्रिय नाग वासुकी अभिषेक, 1008 नाग गायत्री मंत्र जाप और हवन करने से सभी तरह के भय एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति का आशीष मिलता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और इस भगवान शिव के साथ वासुकी नाग का आशीर्वाद पाएं।