पुराणों और वेदों के अनुसार एक बार ऋषि कश्यप को उनके पिछले जन्म के कर्मों के कारण केतु-शनि श्रापित दोष का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां सही से नहीं निभाईं और कई लोगों को कष्ट पहुंचाया। जिसके कारण न्याय के देवता कहे जाने वाले शनि देव और वैराग्य का ग्रह कहे जाने वाले केतु ने मिलकर ऋषि कश्यप के मानसिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न की। मान्यता है कि केतु-शनि श्रापित दोष तब लगता है जब किसी जातक की कुंडली में शनि और केतु एक ही भाव में हों। श्रापित का अर्थ है पिछले जन्म के कर्मों के कारण श्राप मिलना। यह दोष कार्यों में देरी, उत्पादकता में कमी, और करियर और रिश्तों में अस्थिरता का कारण बन सकता है। ऋषि कश्यप ने अपनी स्थिति और इस दोष को जानने के बाद भगवान शिव से राहत की प्रार्थना की। भगवान शिव ने ऋषि कश्यप को केतु-शनि श्रापित शांति यज्ञ और तिल-तेल अभिषेक की सलाह दी। मान्यता है कि इस दोष के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए यह अनुष्ठान मददगार साबित होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि-केतु श्रापित दोष यज्ञ और तिल-तेल अभिषेक करने से मानसिक और भावनात्मक कष्टों से राहत मिल सकती है। इसके साथ ही यह अनुष्ठान करने से शनि और केतु की ऊर्जाओं का संतुलन भी बनता है, जिसके कारण मानसिक शांति भी प्राप्त हो सकती है। पवित्र श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है। श्रावण मास में यह अनुष्ठान अत्यंत लाभदायक माना गया है। उज्जैन का श्री नवग्रह मंदिर इस पूजा के लिए सबसे शुभ स्थान है। इस मंदिर में सभी नौ ग्रहों की पूजा की जाती है। ऐसे में पवित्र श्रावण मास में श्री मंदिर के माध्यम से उज्जैन के श्री नवग्रह शनि मंदिर में होने वाले केतु-शनि श्रापित दोष शांति यज्ञ और तिल-तेल अभिषेक में भाग लें और भगवान शिव और शनिदेव का दिव्य आशीष प्राप्त करें।