कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो कृष्ण भक्तों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। यह त्यौहार हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण, विष्णु के आठवें अवतार, का जन्म इसी दिन देवकी और वासुदेव के घर हुआ था। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। खासकर इस शुभ दिन जन्माष्टमी पर, भगवान कृष्ण के बाल रूप, जिन्हें लड्डू गोपाल के रूप में जाना जाता है, उनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस दिन उनके जन्मस्थान मथुरा में लड्डू गोपाल की पूजा करने का बहुत महत्व माना जाता है। ब्रज भूमि की एक मार्मिक कहानी लड्डू गोपाल से जुड़ी भक्ति को उजागर करती है। भगवान कृष्ण के एक समर्पित अनुयायी कुंभनदास जी के पास कृष्ण की एक मूर्ति थी और वे बड़ी निष्ठा से उनकी सेवा करते थे जब कृष्ण ने प्रसाद नहीं खाया तो रघुनंदन रो पड़े। बालक की ईमानदारी से अभिभूत होकर भगवान कृष्ण अपने बाल रूप में प्रकट हुए और लड्डू खाया, तब से कृष्ण को लड्डू गोपाल के रूप में पूजा जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है लड्डू गोपाल का अभिषेक, जिसे पंचामृत अभिषेक के रूप में जाना जाता है। इस दिन लड्डू गोपाल के झूलनोत्सव का भी बहुत महत्व है। झूलनोत्सव का अर्थ है किसी मूर्ति या देवता को झूले पर बिठाकर उसे धीरे-धीरे झुलाना। ऐसा माना जाता है कि लड्डू गोपाल को झूला झुलाने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। लड्डू गोपाल को झूले पर इसलिए रहना अच्छा लगता है क्योंकि मां यशोदा उन्हें प्यार से झुला झुलाती थीं। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में हुआ था। इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र अष्टमी तिथि के साथ है, जिससे जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल की पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि मथुरा में इस शुभ दिन पर लड्डू गोपाल का पंचामृत अभिषेक और झूलनोत्सव करने से सुख, समृद्धि और खुशहाली का अपार आशीर्वाद मिलता है। इसलिए मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी पर यह पूजा आयोजित की जाएगी। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और लड्डू गोपाल से विशेष आशीर्वाद प्राप्त करें।