हिंदु कैलेंडर के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को ललिता सप्तमी मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, शुक्ल पक्ष की सप्तमी को माता ललिता ने कामदेव के शरीर के राख से उत्पन्न हुए भांडा नाम के राक्षस को मारने के लिए अवतार लिया था। यही कारण है कि यह दिन मां ललिता की पूजा के लिए शुभ माना गया है। इस दिन भक्त देवी ललिता की कृपा पाने के लिए षोडशोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते हैं और ललिता सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करते हैं। मां ललिता को मां त्रिपुर सुंदरी, राजराजेश्वरी, कामाक्षी नाम से भी जाना जाता है। मां ललिता दस महावद्याओं में से एक हैं। इनका स्वरूप सौम्य है और उन्हें तीनों लोकों में सबसे सुंदर माना जाता है। देवी के सोलह वर्ष की आयु वाले स्वरूप को षोडशी कहा जाता है। मान्यता है कि भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विधि विधान के साथ श्री ललिता सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ एवं त्रिपुर सुंदरी हवन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
शास्त्रों के अनुसार, सबसे पहले ललिता सहस्त्रनाम स्त्रोत पाठ माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने अपने पिता भगवान शिव के मुख से सुना था। कई ऋषियों ने इस स्तोत्र का जाप करके देवी को प्रसन्न किया और सिद्धियाँ प्राप्त की हैं। इसलिए यह माना जाता है कि कलियुग में जो कोई भी देवी के हजार नामों से पूजा करेगा, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी। प्रयागराज में माँ ललिता देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता सती की उंगली गिरी थी। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त ललिता सप्तमी के शुभ दिन पर इस शक्तिपीठ में माँ ललिता की पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं देवी की कृपा से पूरी होती हैं। यदि आप भी अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए माँ ललिता का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो श्री मं