हिंदु धर्म में आध्यात्मिक दृष्टि से अमावस्या तिथि को महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है। पौराणिक कथानुसार, मां दुर्गा ने अमावस्या तिथि पर ही असुरों और बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए मां काली का रूप धारण किया था। यही कारण है कि सभी अमावस्या तिथियों पर मां काली की पूजा शुभ और अत्यधिक फलदायी मानी जाती है। महालया अमावस्या भी मां काली की पूजा के लिए सबसे शुभ तिथियों में से एक है, क्योंकि महालया अमावस्या को देवी भगवती के आगमन का सूचक माना जाता है। मां काली देवी दुर्गा का उग्र रूप हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान किए जातें हैं, जिनमें से मां काली मूल मंत्र जाप एवं काली कर्पूर अष्टकम एक है। महालया अमावस्या पर काली मूंल मंत्र जाप एवं काली कर्पूर अष्टकम का पाठ करना अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। इसके पाठ से मनुष्य के जीवन से शत्रुओं का नाश हो सकता है। कहते हैं काली कर्पूर अष्टकम में इतनी शक्ति है कि इसका पाठ करने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से अत्यंत बलवान हो सकता है जिससे वो निर्भयता पूर्वक समस्याओं का सामना करता है और जीवन में हर प्रकार के भौतिक सुखों का आनंद प्राप्त कर सकता है। देवी महाकाली अपने भक्तों के जीवन में प्रकाश और आशा की किरण लाती हैं, साथ ही नकारात्मकता और अंधकार को दूर करती हैं। देवी काली एक मात्र ऐसी शक्ति हैं जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है।
कोलकत्ता का शक्तपीठ कालीघाट मंदिर मां काली का सबसे बड़ा मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर दुखी होकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तब उनके दाहिने पैर का अंगूठा इसी स्थान पर गिरा था। इसी कारण से यह स्थान पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यही कारण है कि महालया अमावस्या तिथि के शुभ अवसर पर कोलकत्ता के शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में 11,000 माँ काली मूल मंत्र जाप और काली कर्पूर अष्टकम पाठ का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और मां काली द्वारा निर्भयता प्राप्ति एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीष प्राप्त करें।