हिंदु धर्म में नाग पंचमी का विशेष महत्व है। यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया था। नागों के योगदान को याद करने के लिए नाग पंचमी पर्व मनाया जाने लगा। इस दिन सांपों के लिए की गई पूजा नाग देवताओं तक पहुंचती है। वासुकी के भाई शेषनाग को अनंत नाग भी कहा जाता है, अष्टनागों में ये सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं। इन्हें भगवान श्रीहरि का सेवक माना जाता है इसलिए वो विष्णु प्रिय भी हैं। पुराणों में वर्णित है कि अनंत नाग के फन पर ही धरती टिकी हुई है। अनंत का मतलब है कि जिसका अंत न हो सके। शास्त्रों के अनुसार, विष्णु भगवान के अवतारों में से राम और कृष्ण भी शेषनाग से संबंधित हैं। बताया जाता है कि त्रेतायुग के राम जी के साथ में शेषनाग ने लक्ष्मण भगवान का रूप धरा था।
वहीं द्वापर युग के कृष्ण अवतार में शेषनाग जी ने बलराम जी का अवतार लिया था। जब वसुदेव जी भगवान कृष्ण भगवान को टोकरी में डालकर नंद जी के यहां ले जा रहे थे तब शेषनाग जी उनकी छतरी की तरह उनको बारिश से बचा रहे थे। वहीं शेषनाग के बारे में बताया जाता है कि वो नागों में सबसे शक्तिशाली हैं और क्रोधी स्वभाव के हैं, नागों समेत इनकी माता भी इनसे भयभीत रहती थीं। बलरामजी शेषनाग के अवतार थे, इसीलिए क्रोध उनका स्वाभाविक गुण था। मान्यता है कि शेषनाग गायत्री मंत्र के जाप से नकारात्मकता भी दूर होती है और सकारात्मक शक्तियों का संचार होता है। 'ओम' की मौलिक ध्वनि से शुरू होने वाले किसी भी गायत्री मंत्र को शक्तिशाली माना गया है, जो भक्तों को किसी भी तरह की नकारात्मकता से दूर रहने में मददगार होता है। इसलिए मथुरा में विराजित विष्णु जी के प्रिय स्थल श्री दीर्घ विष्णु मंदिर में नागपंचमी के शुभ दिन पर 11,000 शेषनाग गायत्री मंत्र का जाप और हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और शेषनाग का आशीर्वाद प्राप्त करें।