भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय राधारानी का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस वजह से हर साल उस तिथि को राधा अष्टमी मनाते हैं। राधा अष्टमी को राधा जयंती के नाम से भी जानते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से 14 या 15 दिन बाद राधा अष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की उपासना करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। कहा जाता है कि जो भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद पाना चाहता है, उसे राधारानी की कृपा पानी होती है। राधा जी के नाम जप से भगवान श्रीकृष्ण को पाना सरल है। मान्यता है कि राधा अष्टमी के शुभ पर्व पर राधा रानी पंचामृत अभिषेक करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि आती है और राधा कृष्ण के आशीर्वाद से सभी दुख दूर होते हैं।
वहीं पुराणों के मुताबिक, राधा को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि राधा कृष्ण के सभी अवतारों में उनके साथ रहती हैं, जैसे भगवान विष्णु के श्री राम और श्री कृष्ण अवतार के समय, लक्ष्मी जी ने देवी सीता और देवी राधा का अवतार लिया था। इसलिए देवी लक्ष्मी के रूप राधा रानी को प्रसन्न करने के लिए उनके अभिषेक के अलावा श्री सूक्तम पाठ अत्यंत प्रभावशाली अनुष्ठान माना गया है। ऋग्वेद में माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए ‘श्री-सूक्तम’ के पाठ करने पर मनचाही मनोकामना पूरी होने की बात कही गई है। इसलिए माता लक्ष्मी के स्वरूप राधा रानी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्तम पाठ किया जा सकता है। वहीं अगर यह किसी शुभ दिन या योग पर किया जाए तो इसका फल और भी प्रभावशाली होगा, इसलिए राधा अष्टमी के शुभ अवसर पर राधा रानी पंचामृत अभिषेक और श्री सूक्तम पाठ का आयोजन किया जा रहा है। इस साल राधा अष्टमी के दिन रवि योग भी बन रहा है। इस शुभ संयोग पर होने वाली मथुरा के श्री राधा दामोदर मंदिर में इस पूजा का आयोजन किया जा रहा है। इस पर्व पर पीले वस्त्र के दान करने की भी परंपरा है, अगर आप चाहे तो पूजा में पीले वस्त्र के दान के विकल्प को चुन सकते हैं। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान श्री कृष्ण की प्रिय राधा रानी का आशीष पाएं।