सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है और यह तिथि पितरों की पूजा के लिए शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर पितृगण वायु के रूप में सूर्यास्त तक घर के दरवाजे पर रहते हैं और अपने कुल के लोगों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। पुराणों में बताया गया है कि यदि ठीक प्रकार से पूर्वजों का श्राद्ध न किया जाए तो पूरे कुल को पितृ दोष का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष, ऐसा दोष होता है जो न सिर्फ एक व्यक्ति बल्कि पूरे परिवार के लिए कष्टकारी होता है। माना जाता है कि जिस परिवार पर पितृ दोष होता है, उन सदस्यों को नौकरी में पदोन्नति जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, बच्चों के करियर और पढ़ाई में भी दिक्कतें होती हैं तथा घर के मुख्य सदस्य को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हिन्दू शास्त्रों में अमावस्या का दिन पितरों की शांति के लिए विशेष महत्त्व रखता है, यह दिन पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए उत्तम माना गया है। वहीं कार्तिक मास में पड़ने वाली अमावस्या अत्यधिक फलदायी मानी जाती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह महीना चतुर्मास का अंतिम महीना है और इस समय सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव पर रहता है, क्योंकि भगवान विष्णु निद्रा की अवस्था में रहते हैं। भगवान शिव की कृपा से सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिल सकती है फिर चाहे वो पितृ दोष ही क्यों न हो। इसी कारणवश महादेव की नगरी काशी में पितृ दोष निवारण पूजा करना अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार पिशाच मोचन कुंड पर पितृ के निमित्त श्राद्ध करने का अधिक महत्व है। इसके अलावा मान्यता है कि मोक्षदायिनी मां की गंगा आरती करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं, पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए कार्तिक अमावस्या के शुभ अवसर पर काशी के पिशाच मोचन कुंड पर पितृ दोष निवारण पूजा और काशी गंगा आरती का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और पूर्वजों की आत्मा की शांति एवं पारिवारिक क्लेश से मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करें।