🚩 साल 2024 की अंतिम शनि पूर्णिमा पर इस पूजा में क्यों लेना चाहिए भाग? 🛕
ज्योतिषियों के अनुसार, साल 2024 को शनि का साल माना गया है, जो अब समाप्त होने को है। शनिवार के दिन पडने वाली पूर्णिमा को शनि पूर्णिमा कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से भक्तों को उनके दुष्प्रभावों से राहत मिलती है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शनिदेव प्रत्येक व्यक्ति को उसके अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अनुकूल स्थिति में हों तो वे जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हालाँकि, यदि शनि पीड़ित हैं, तो व्यक्ति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए हर कोई शनिदेव की विशेष कृपा पाने का प्रयास करता है। महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा शनि मंदिर माना जाता है, में शनि पूर्णिमा के दिन पूजा करना बेहद प्रभावी हो सकता है।
शनिदेव के इस मंदिर को 'जागृत देवस्थान' के नाम से जाना जाता है, यानी यहां स्वयं शनिदेव पत्थर की मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस प्राचीन मंदिर में शनि पूजा करने और तिल तेल चढ़ाने से शनि साढ़ेसाती के प्रभाव से राहत मिल सकती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की साढ़े साती को अक्सर प्रतिकूल माना जाता है, इसके प्रभाव को ढाई-ढाई साल के तीन चरणों में विभाजित किया गया है। वहीं शनि की महादशा 19 साल तक चलती है। इस चरण के दौरान, शनि व्यक्तिगत कर्म और कुंडली में ग्रह की स्थिति के आधार पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव डालता है। इन सभी अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए विभिन्न प्रकार की पूजाएं की जाती हैं, जिनमें शनि साढ़े साती पीड़ा शांति महापूजा, शनि तिल तेल अभिषेक और महादशा शांति महापूजा बेहद प्रभावी मानी जाती हैं। इसलिए यह पूजा शनि पूर्णिमा को शनि शिंगणापुर में श्री शनिदेव मंदिर, आयोजित की जाएगी। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और शनि देव से आशीर्वाद प्राप्त करें।