सनातन धर्म में महाकुंभ पर्व का विशेष महत्व है, जो हर 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है। महाकुंभ का आयोजन भारत के चार पवित्र स्थलों_प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में किया जाता है, जिसमें प्रयागराज को तीर्थराज कहा जाता है। इसके पीछे एक मान्यता है कि, जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से अमृत का कलश लेकर आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि प्रकट हुए। अमृत प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष छिड़ा। इस संघर्ष से अमृत को सुरक्षित रखने के लिए धन्वंतरि जी करीब 12 वर्षों तक ब्रह्मांड में अमृत कलश लेकर घूमते रहे। इस दौरान, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों में गिर गईं। इन्हीं चार स्थानों को पवित्र मानते हुए, यहां हर 3 वर्षों में कुंभ का आयोजन किया जाता है। वहीं इस दौरान पूर्णिमा भी पड रही है जो सभी तिथि में बहुत खास मानी जाती है। इस दिन पूर्वजों का आशीर्वाद पाने के लिए पितरों की पूजा भी कर सकते हैं।
इसलिए श्री मंदिर द्वारा महाकुंभ के दौरान पूर्णिमा पर प्रमुख चार कुंभ क्षेत्रों में से एक त्रिवेणी संगम पर पितृ दोष शांति महापूजा की आयोजन कराया जा रहा है। इसके अतिरिक्त उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित मंगलनाथ महादेव मंदिर में मंगलनाथ महाभिषेक एवं हरिद्वार में गंगा आरती का आयोजन भी कराया जा रहा है। हिंदु धर्म ग्रंथों के अनुसार 'पितृ दोष' पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं और नकारात्मक कर्मों के कारण होता है। इस दोष के कारण आर्थिक परेशानियां, रिश्तों में तनाव एवं विवाद और स्वास्थ्य संबधी समस्याओं का सिलसिला लगा ही रहता है। मान्यता है कि महाकुंभ में पूर्णिमा के दिन इन प्रमुख क्षेत्रों में यह पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति और पारिवारिक विवादों के समाधान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं, नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर मान्यता है कि यहां रुद्राभिषेक करने से सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है और व्यक्ति को मानसिक शांति एवं सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस अतिरिक्त विकल्प का चयन करें।