सनातन धर्म में दुर्गा अष्टमी का पवित्र पर्व हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन माँ दुर्गा के दिव्य एवं उग्र रूपों की पूजा करना अत्यंत शुभ होता है। देवी प्रत्यांगिरा आदिशक्ति का एक शक्तिशाली रूप हैं। मां प्रत्यांगिरा देवी को बुरी शक्तियों को खत्म करने और अपने भक्तों की सुरक्षा करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। वहीं, रविवार का दिन भगवान भैरव को समर्पित होता है। इसलिए भक्त इस दिन भगवान भैरव की अराधना कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। प्रत्यांगिरा देवी को आदिशक्ति का उग्र और रक्षात्मक रूप माना गया है। वह अपने भक्तों को हर प्रकार की नकारात्मकता और बुरी शक्तियों से बचाने के लिए जानी जाती हैं। जबकि भगवान भैरव को "काल का स्वामी" कहा गया है, जो समय, नकारात्मकता और भय को नियंत्रित करते हैं। उनकी कृपा से साधक को न केवल सुरक्षा मिलती है, बल्कि साहस, आत्मविश्वास और मानसिक शांति का वरदान भी मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि देवी प्रत्यांगिरा की दिव्य ऊर्जा का आह्वान करने से भक्तों के आसपास सुरक्षा कवच बनता है जो उनके रास्ते में आने वाले किसी भी नुकसान या खतरे को दूर कर सकता है। वहीं भैरवनाथ को आपत्तियों का विनाश करने वाला देवता कहा गया है। इनकी अराधना से भक्तों के आंतरिक एवं बाह्य स्तर पर मौजूद नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्राप्त होता है। मान्यता है कि अगर दुर्गा अष्टमी एवं रविवार के शुभ संयोग पर इन्हें प्रसन्न किया जाए तो भक्तों को सर्वोच्च सुरक्षा का आशीष मिलता है। इसलिए इन दिनों देवी एवं भैरव की विशेष पूजा अर्चना करना लाभकारी हो सकता है। यही कारण है कि रविवार एवं दुर्गा अष्टमी के शुभ संयोग पर देवी प्रत्यांगिरा एवं भैरव संयुक्त पूजा का आयोजन किया जा रहा है। इस पूजा में प्रत्यांगिरा देवी की उग्र शक्ति और भैरव भगवान की दिव्य कृपा का संगम होता है। यह न केवल भौतिक और आध्यात्मिक संकटों से बचाता है, बल्कि साधक के जीवन को सफल, सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में अवश्य भाग लें।