🕉️महाशिवरात्रि निशित काल में रुद्राभिषेक क्यों हैं इतनी प्रभावशाली ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव व पार्वती का विवाह हुआ था। इसके अतिरिक्त पुराणों में वर्णित है कि, इस दिन भगवान शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। यही कारण है कि इस शुभ दिन पर भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं जिनमें निशित काल यानि मध्य रात्रि को किया गया शिव रुद्राभिषेक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य फलदायी माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान शिव निशित काल के दौरान शिवलिंग के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। शास्त्रीय परंपराओं के अनुसार, शिवरात्रि की पूजा निशिता काल में करना सबसे शुभ माना गया है। यह अभिषेक करने से भक्त असंभव को संभव करने की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। माना जाता है कि इस समय में शिव रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों को सर्वोच्च दिव्य कृपा की प्राप्ति होती है।
वहीं अगर यह अनुष्ठान महाशिवरात्रि के अवसर पर किया जाए तो यह भक्तों को आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है और उसे परम शांति, मोक्ष और शिवत्व की ओर अग्रसर करता है। अत: महाशिवरात्रि की निशित काल में किया गया यह पूजन अद्भुत आध्यात्मिक एवं अलौकिक फल देने वाला है, जिससे जीवन में दिव्यता, आध्यात्मिक उन्नति एवं सर्वोच्च शिव कृपा का संचार होता है। वहीं, यदि ये अनुष्ठान काशी के ओंकारेश्वर महादेव मंदिर में किया जाएं, तो यह और भी अधिक फलदायक माना जाता है। काशी के अविमुक्त क्षेत्र में ओंकारेश्वर का स्थान सबसे श्रेष्ठ है। इतना ही नहीं इस मंदिर की मान्यता है कि यहां के दर्शन करने से ब्रह्मांड के सभी शिव मंदिरों के दर्शन के बराबर फल प्राप्त होता है। इस मंदिर के बारे में पुजारी बताते हैं कि यहां बैठकर खुद ब्रह्मा ने तपस्या की थी और श्रृष्टि के निर्माण के बाद उन्होंने भगवान शिव से अनुरोध किया था जिसके बाद भोलेनाथ इस स्थान ओंकारेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए महाशिवरात्रि के दौरान काशी के इस ओंकारेश्वर महादेव मंदिर में शिव रुद्राभिषेक का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान शिव से सर्वोच्च दिव्य कृपा के लिए और साधना को बढ़ाने का आशीर्वाद प्राप्त करें।