आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पालनहार भगवान विष्णु चार माह तक शयन में चले जाते हैं, इसलिए इसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु के चार माह तक शयन में जाने के कारण इसे चतुर्मास, हरिशयनी एवं पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस चातुर्मास में सभी देव सो जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में आ जाता है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए देवशयनी एकादशी का दिन अत्यंत शुभ माना गया है, इस दिन श्रीहरि की पूजा करने से भक्तों को शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन न केवल भगवान विष्णु बल्कि बृहस्पति की भी पूजा की जाती है क्योंकि भगवान विष्णु बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस ग्रह को विवाह का कारक माना जाता है।
अगर आपकी कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थिति में है, तो आप अपने वैवाहिक जीवन में सुखी रहेंगे, आपको मनचाहा जीवनसाथी मिलेगा और आपके पार्टनर के साथ कोई विवाद नहीं होगा। लेकिन वहीं, अगर कुंडली में बृहस्पति अशुभ स्थिति है, तो कई तरह की समस्याएं उत्पन्न कर सकता है जैसे: विवाह में देरी या वैवाहिक जीवन में समस्याएं, पार्टनर के बीच विवाद होना। कुंडली में बृहस्पति की प्रतिकूल स्थिति को कम करने के लिए, देवशयनी एकादशी पर बृहस्पति ग्रह और भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। इसलिए, देवशयनी एकादशी के शुभ दिन पर काशी में विराजित श्री बृहस्पति मंदिर में 16,000 बृहस्पति ग्रह मूल मंत्र जाप और सुदर्शन हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और एक आदर्श जीवनसाथी एवं रिश्ते का आनंद पाने के लिए आशीष प्राप्त करें।