शास्त्रों की मानें तो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर धरती पर मां गंगा का अवतरण हुआ था। इसलिए यह गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भागीरथ ऋषि ने अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी और उनके अथक प्रयासों के बाद माँ गंगा का धरती पर आगमन हुआ, लेकिन माँ गंगा का वेग इतना अधिक था कि अगर वह सीधे धरती पर आतीं तो धरती में प्रलय की स्थिति बन जाती और वह पाताल में ही चली जातीं। भक्तों द्वारा अथक प्रार्थना करने पर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में भर लिया और उसके बाद माँ गंगा कैलाश से होते हुए धरती पर पहुंची और भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया।
मान्यता है कि इस शुभ दिन पर विधि-विधान से मां गंगा की उपासना करने से जातक को सभी पापों, कष्टों एवं रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इसके अलावा इस दिन दान, अन्न, भोजन और जल जैसे पुण्य कार्य करने की भी परंपरा है। यही कारण है कि गंगा दशहरा पर पूजा के लिए हर की पौड़ी, हरिद्वार में की जाने वाली माँ गंगा की पूजा विश्व प्रसिद्ध है। धार्मिक कथाओं के अनुसार हरिद्वार में लाखों करोड़ों वर्ष तक भगवान ब्रह्मा ने तपस्या की थी इसलिए हरिद्वार में गंगा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। यही कारण है कि इस शुभ अवसर पर श्री मंदिर 1008 गंगा मंत्र जाप, गंगा पंचामृत अभिषेक और दीप दान का आयोजन कर रहा है, जिसमें भाग लेकर भक्तों को पापों से मुक्ति एवं शारीरिक कल्याण का आशीष प्राप्त होता है।