मानसिक एवं शारीरिक शक्ति के लिए गुप्त नवरात्रि अष्टमी विशेष दस महाविद्या पूजा और 1008 लाल पुष्प हवन
वैदिक पंचांग के अनुसार गुप्त नवरात्रि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष से शुरू होती है। इस शुभ पर्व के नौ दिनों में दस महाविद्याओं की गुप्त रूप से पूजा की जाती है, इसलिए इस पर्व को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। दस महाविद्याओं को देवी दुर्गा का स्वरूप एवं सभी सिद्धियों का दाता माना जाता है। कहा जाता है कि जो लोग इन दस महाविद्याओं की पूजा करते हैं उन्हें सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव एवं उनकी पत्नी सती के बीच विवाद से हुई थी। सती ने अपने पिता द्वारा आयोजित एक यज्ञ में भाग लेने की जिद की, जिसे शिव ने नजरअंदाज कर दिया। तब सती ने खुद को एक उग्र रूप यानि काली अवतार धारण किया। जिसे देखकर शिव आश्चर्यचकित हो गए और सभी दिशाओं में भागने लगे। तभी माता सती ने उन्हें रोकने का प्रयास किया जिसके लिए देवी ने स्वयं को दसों दिशाओं में प्रकट किया, जिन्हें दस महाविद्याओं के रूप में जाना गया।
गुप्त नवरात्रि के दौरान इन दस महाविद्याओं की पूजा करने से भक्तों को मानसिक एवं शारीरिक शक्ति के साथ साहस का आशीर्वाद मिलता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि मां भगवती को लाल फूल बहुत प्रिय हैं। चूंकि दस महाविद्याएं मां गौरी का ही रूप हैं, इसलिए उन्हें लाल फूल चढ़ाना सबसे अच्छा माना जाता है। न केवल फूल चढ़ाने से बल्कि दस महाविद्याओं को लाल फूलों की आहुति देने से भी वे बेहद प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को मानसिक और शारीरिक शक्ति का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए गुप्त नवरात्रि के आठवें दिन दस महाविद्या पूजा और 1008 लाल पुष्प हवन का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और दस महाविद्याओं से आशीर्वाद प्राप्त करें।
कालीमठ मंदिर , रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड
रुद्रप्रयाग जिले में गुप्तकाशी शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है कालीमठ मंदिर। ये पवित्र मंदिर माँ काली को समर्पित है, जो उग्र देवी के रूप में विराजमान हैं। यहां विराजित मां काली अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके जीवन से बुरी शक्तियों का विनाश करती हैं। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मां काली अपनी बहनों माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ विराजित हैं। इस मंदिर से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर एक दिव्य चट्टान है। इस शीला को कालीशिला के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी।
तब यहां माँ भगवती 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुईं, कालीशिला में देवताओं के 64 यंत्र हैं। असुरों के आतंक के बारे में सुनकर माता का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने क्रोध का रूप धारण कर लिया। युद्ध में माता ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया। इन 64 यंत्रों से मां को मिली थी शक्ति कालीमठ मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है। कालीमठ मंदिर में एक कुंड है, जो चांदी के बोर्ड/श्रीयंत्र से ढका हुआ है। भक्त मंदिर के अंदर स्थित कुंड की पूजा करते हैं, यह पूरे वर्ष में केवल शारदीय नवरात्र में अष्टमी को खोला जाता है। दिव्य देवी को बाहर निकाला जाता है और पूजा भी आधी रात को ही की जाती है, तब केवल मुख्य पुजारी ही उपस्थित होते हैं।
సమీక్షలు & రేటింగ్స్
శ్రీ మందిరం గురించి మన ప్రియమైన భక్తులు ఏమనుకుంటున్నారో చదవండి.
Achutam Nair
Bangalore
Ramesh Chandra Bhatt
Nagpur
Aperna Mal
Puri
Shivraj Dobhi
Agra
Mukul Raj
Lucknow
User Reviews
Reviews from our devotees who booked Puja with us
Harnisha Soma
10 March, 2025
Thanks for a great pooja 🙏
iltu Singha
09 March, 2025
good service, thanks Sri mundir ❤️❤️
RENUKA VIPAT ODAK
09 March, 2025
It's wonderful service, may God bless the founder and operator of the App.,💐💐
మన గత పూజా అనుభవాల సంగ్రహావలోకనం
మీ పేరు, గోత్ర జపంతో సహా పూర్తి వీడియో రికార్డింగ్, పూజ పూర్తయిన తర్వాత పంచుకోబడుతుంది.