हिंदु धर्म में नाग पंचमी का विशेष महत्व है। यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जिस तरह भगवान शिव को श्रावण माह प्रिय है उसी तरह नाग भी विशेष प्रिय है, इसलिए वे नाग देव को अपने गले में धारण किए रहते हैं। यही कारण है कि उन्हें "नागभूषण" भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि के सृजन के लिए जब ब्रह्माजी ने घोर तपस्या की तो एक बार वो हताश होने लगे और उनके आंसू पृथ्वी पर गिर गए और तत्काल ही वो सर्प के रूप में उत्पन्न हो गए। इन सर्पों पर कोई अत्याचार न हो ऐसा विचार कर भगवान सूर्यदेव ने इन्हें पंचमी तिथि का अधिकारी बना दिया। तभी से पंचमी तिथि पर नागों की पूजा करने का विधान है। इस दिन नाग देवताओं के साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है, वहीं इस दिन काल सर्प दोष निवारण पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। ज्योतिषियों का मानना है कि, काल सर्प दोष तब बनता है जब कुंडली में सभी सात ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं।
वहीं, अगर किसी की कुंडली में काल सर्प दोष है तो इस दोष से जुड़े इन नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए नागपंचमी के दिन काल सर्प दोष निवारण पूजा करना लाभकारी माना गया है। इसके साथ ही भगवान शिव की उपासना राहु और केतू के अशुभ प्रभाव को शांत करने में सहायक होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा परीक्षित को नागराज तक्षक द्वारा डसने के बाद, उनके वंशजों ने मृत्यु के भय को दूर करने और अपने परिवार को सर्प दोष से बचाने के लिए प्रयागराज के श्री तक्षकेश्वर तीर्थ मंदिर में पांच शिव लिंग स्थापित किए थे। तभी से, यह माना जाने लगा है कि जो कोई भी इस प्राचीन मंदिर में पूजा करता है, उसे काल सर्प दोष से राहत मिलती है। इसलिए श्रावण मास में नागपंचमी के दिन इस मंदिर में काल सर्प दोष निवारण पूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और इस दोष के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाएं।