देवी पूजा के लिए अष्टमी तिथि को शुभ माना गया है। इस दिन देवी के किसी भी रूप की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। देवी काली जो कि शक्ति का एक उग्र रूप हैं, यह नकारात्मकता का नाश करने के लिए प्रकट हुई थीं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि की रचना से पहले देवी काली अंधकार के रूप में सब तरफ विद्यमान थीं। सृष्टि को प्रारंभ करने के लिए देवी ने एक ज्योति प्रकट की, जिसके बाद सब कुछ प्रकाशमय हो गया। इसके बाद ही देवी ने सृष्टि एवं प्रकृति की रचना शुरू की। इसका एक उदाहरण रूद्रप्रयाग में स्थापित कालीमठ में देखने को मिलता है। इस पवित्र स्थल का उल्लेख स्कंद पुराण में भी है।
मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों से परेशान देवियों ने मां भगवती की तपस्या की थी। मां भगवती कालीशिला में 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुईं। असुरों के आतंक के बारे में सुनकर मां का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। माता एवं असुरों के बीच युद्ध हुआ जिसमें देवी ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया। जिस प्रकार देवी काली ने असुरों का संहार किया, वैसे ही यहां पूजा करने से भक्तों के जीवन से मां काली बुरी शक्तियों, नकारात्मक ऊर्जा एवं भय से सुरक्षा का वरदान देती हैं। मान्यता है कि मां काली यहां स्थित कुंड में समाहित हैं, इसलिए अष्टमी के शुभ दिन पर इस पूजा में 1008 काली मूल मंत्र जाप और काली सहस्रनाम पाठ कर देवी काली को प्रसन्न किया जा सकता है।