वैदिक पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन गुरु के साथ देवगुरु बृहस्पति की भी पूजा की जाती है। ऐसा करने से कुंडली में मौजूद गुरु ग्रह के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष शास्त्र की मानें राहु-गुरु की युति से बनने से गुरु चांडाल योग बनता है। इस विशेष युति को विनाशकारी योग माना गया है क्योंकि इस अशुभ योग के बनने से कुंडली में मौजूद शुभ योग भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे जीवन में परेशानियों का सिलसिला शुरू हो जाता है जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, करियर, वैवाहिक जीवन में तनाव आदि। इस विनाशकारी योग से राहत पाने और धन, सुख एवं समृद्धि प्राप्ति के लिए गुरु चांडाल दोष निवारण महापूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।
महादेव की नगरी काशी में श्री बृहस्पति मंदिर का विशेष स्थान है। काशी खंड के अनुसार, बृहस्पति (गुरु) से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। मान्यता है कि ऋषि अंगिरस ने इसी स्थान पर भगवान शिव की उपासना की थी और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें बृहस्पति अर्थात देवगुरु की उपाधि दी और नवग्रह मंडल में महत्वपूर्ण स्थान भी दिया, तभी से देवगुरु बृहस्पति काशी के इस मंदिर में विराजमान हैं। गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु चांडाल योग के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है, इसलिए इस शुभ दिन पर काशी के श्री बृहस्पति मंदिर में राहु-गुरु शांति विशेष गुरु चांडाल दोष निवारण महापूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इसमें भाग लें और जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों से मुक्ति पाएं।