ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु ग्रह का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्हें छाया और मायावी ग्रह माना गया है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राहु और केतु एक ही राक्षस स्वरभानु के शरीर से उत्पन्न दो दिव्य प्राणी हैं। स्वरभानु के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु-केतु की दशा चल रही हो तो उसके प्रयासों में असफलता, पारिवारिक कलह, बुरी आदतों की लत, आर्थिक तंगी और निर्णय लेने में समस्या की संभावना बढ़ जाती है। इसके साथ ही राहु-केतु की दशा से पीड़ित जातक को शारीरिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। मान्यता है कि इस अशुभ दशा से पीड़ित जातक को राहत पाने के लिए राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा करनी चाहिए। वहीं यदि यह पूजा किसी विशेष नक्षत्र में की जाए तो यह और ज्यादा फलदायी हो सकती है। ज्योतिषियों की मानें तो इस दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र भी लग रहा है, जिसका स्वामी शुक्र ग्रह है। वहीं, शास्त्रों के अनुसार असुरों के गुरु शुक्राचार्य का संबंध शुक्र ग्रह से है।
शास्त्रों की मानें तो असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी और उनसे मृत संजीवनी विद्या सीखी थी। कहा जाता है कि जिस स्थान पर शुक्राचार्य ने यह तपस्या की थी, उस स्थान का शासन राहु के पास था। राहु गुरु शुक्राचार्य का बहुत सम्मान करते थे। इसी कारणवश राहु ने सभी असुरों का प्रतिनिधित्व किया और शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाया। ज्योतिषियों का मानना है कि पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा करने से राहु और केतु के अशुभ प्रभावों से राहत मिलती है, क्योंकि इस नक्षत्र पर राहु के गुरु शुक्र का शासन है। इसलिए हरिद्वार के पशपुतिनाथ मंदिर में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा के माध्यम से भी राहु-केतु के अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है, क्योंकि राहु-केतु भगवान शिव के भक्त है। ऐसे में राहु-केतु की पीड़ा से राहत एवं भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें।