भैरव का अर्थ है 'रक्षा करने वाला।' बाबा भैरव भगवान शिव के पांचवे अवतार हैं, जिनके दो मुख्य रूप हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब माँ पार्वती ने दारुक नामक असुर का वध करने के लिए माँ काली का विनाशकारी रूप धारण किया तो वो नियंत्रण से बाहर हो गयीं। माता को पुनः चेतना में लाने के लिए भगवान शिव ने एक पांच साल के बालक का रूप धारण किया और देवी को माँ कहकर पुकारने लगे जिसे सुनकर माँ का ह्रदय पिघल गया और उन्होंने वापस पार्वती का रूप धारण कर लिया। माता को शांत करने के लिए भगवान शिव ने जिस रूप को धारण किया था उन्हीं को 'बटुक भैरव' कहते हैं। श्री बटुक भैरव, भगवान भैरव के बाल स्वरूप हैं जिन्हें धन-धान्य एवं संपत्ति का दाता भी माना जाता है।
वहीं काशी में भगवान भैरव का अलग महत्व बताया है, धार्मिक कथाओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ ने ही यहां भैरव जी को काशी का कोतवाल और दंडनायक के रूप में नियुक्त किया था। महादेव की नगरी काशी में भक्तों की पूजा भैरव के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। वैसे तो भगवान भैरव की पूजा किसी भी दिन किया जा सकता है लेकिन गुरुवार का दिन इनकी पूजा करना श्रेष्ठ और विशेष फलदाई माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, स्वर्णाकर्षण भैरव पूजा, धन और समृद्धि को आकर्षित करने के लिए की जाती है, जिससे आठ महान सिद्धियों की प्राप्ति होती है और भगवान भैरव के इस स्वरूप की पूजा से ऋण मुक्ति, आर्थिक समृद्धि, जीवन में स्थिरता एवं आपदाओं से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए माना जाता है कि गुरुवार के दिन वैदिक रीतियों से इस पूजा को करने से भक्तों पर बाबा भैरव की विशेष कृपा बनी रहती है।