हिंदु धर्म में कालाष्टमी तिथि का विशेष महत्व है। हिंदु कैलेंडर के अनुसार, हर मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कालाष्टमी मनाई जाती है। यह तिथि भगवान शिव के उग्र रूप बाबा भैरव को समर्पित है। मान्यता है कि कालाष्टमी तिथि पर ही बाबा काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। बाबा काल भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जिसमें बताया गया है कि एक बार भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी में सर्वश्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, जिसमें दोनों एक दूसरे को अपना पुत्र बता रहे थे। तब एक अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ और कहा कि जो इसका ओर-छोर जान लेगा, वही सर्वश्रेष्ठ होगा। ब्रह्मा जी हंस रूप में स्तंभ के ऊपरी भाग का पता लगाने गए, जबकि विष्णु जी वराह रूप में निचले भाग का। विष्णु जी ने सत्य बताया कि उन्हें स्तंभ का अंत नहीं मिला, लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि उन्होंने अंत का पता लगा लिया। तब अग्नि स्तंभ ने पुरुष रूप लिया और वो भगवान शिव के रूप में प्रकट हुए। शिवजी ने ब्रह्मा जी को असत्य बोलने पर उन्हें कभी न पूजे जाने का श्राप दे दिया। क्रोधित ब्रह्मा जी ने शिवजी को अपशब्द कहे, जिसके कारण शिवजी ने अपने अंश से विकराल भैरव को उत्पन्न किया।
बाबा भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवे मुख को काट दिया, जो उनके हाथ से नहीं छूटा। यह ब्रह्महत्या थी, जिससे मुक्ति के लिए भैरव को सृष्टि का विचरण करना पड़ा। अंततः काशी में भैरव के हाथ से ब्रह्मा जी का कपाल छूट गया और वे ब्रह्महत्या से मुक्त हो गए। तब भगवान शिव ने कहा कि भैरव ने कालचक्र पर विजय प्राप्त की है, इसलिए उनका नाम 'काल भैरव' होगा और वे काशी के कोतवाल रहेंगे, तभी से बाबा काल भैरव काशी की रक्षा करते हैं और भक्तों को बुरी शक्तियों से बचाते हैं। इसी कारणवश माना जाता है कि काशी में काल भैरव की पूजा करने से भक्त के आसपास की नकारात्मक और बुरी ऊर्जाएं दूर होती है और उसे परम साहस का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि यदि कालाष्टमी तिथि पर बाबा काल भैरव की पूजा की जाए तो यह दोगुना लाभदायी हो सकती है। इसीलिए कालाष्टमी तिथि पर काशी में श्री काल भैरव तंत्र युक्त महायज्ञ और कालभैरवाष्टकम् का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और काल भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करें।