मां गायत्री चालीसा
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मां गायत्री चालीसा

मां गायत्री की कृपा पाने के लिए पढ़ें श्रद्धा और भक्ति से पूर्ण गायत्री चालीसा। नियमित पाठ से मिलती है शांति, शक्ति और ज्ञान।

मां गायत्री चालीसा के बारे में

हिंदू धर्म में माँ गायत्री को वेदमाता कहा गया है। माना गया है कि चारों वेद माँ गायत्री से ही उत्पन्न हुए हैं। स्कंद पुराण, विष्णु पुराण और अन्य ग्रंथों में गायत्री देवी को सृष्टि की आदि शक्ति, ज्ञान की देवी और यज्ञों की अधिष्ठात्री बताया गया है। ‘गायत्री चालीसा’ माँ गायत्री की स्तुति के लिए रचा गया एक चालीसा पाठ है, जिसमें उनके स्वरूप, गुण और महिमा वर्णन किया गया है।

गायत्री चालीसा क्या है?

हिंदू धर्म में माँ गायत्री को वेदमाता कहा गया है। माना गया है कि चारों वेद माँ गायत्री से ही उत्पन्न हुए हैं। ‘गायत्री चालीसा’ में माँ गायत्री के स्वरूप, शक्ति और उनके कल्याणकारी गुणों का भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इसमें कुल 40 चौपाइयाँ हैं, जिनमें माँ की महिमा और उनके विविध रूपों का सुंदर वर्णन मिलता है। इस चालीसा में माँ गायत्री को त्रिलोकी जननी अर्थात् तीनों लोकों की माता कहा गया है।

साथ ही, उन्हें सप्तऋषियों की पूज्य और ज्ञान, तप, धर्म तथा यज्ञों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी स्थान दिया गया है। शास्त्रों में माँ गायत्री को ब्रह्मा जी की शक्तिरूपा बताया गया है। उनका स्वरूप पंचमुखी एवं दशभुजा धारी है, और प्रत्येक हाथ में कोई न कोई दिव्य चिन्ह होता है। गायत्री चालीसा में भी माँ के इन्हीं रूपों, गुणों और करुणा का विस्तार से उल्लेख मिलता है।

गायत्री चालीसा का पाठ क्यों करें?

गायत्री चालीसा पाठ के द्वारा माता से प्रार्थना की जाती है कि वे हमारे जीवन से दुख, भय और सभी प्रकार की बाधाएं दूर करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यदि श्रद्धापूर्वक इस चालीसा का पाठ किया जाए, तो विपरीत परिस्थितियों में भी मनोबल बना रहता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, गायत्री चालीसा के पाठ से मन में शांति आती है। इसके शब्द और भाव हमारे मन-मस्तिष्क को शुद्ध करते हैं, जिससे तनाव, चिंता और डर दूर होते हैं। साथ ही हमारी सोच सकारात्मक होती है।

गायत्री माता को ज्ञान की देवी माना जाता है। उनके चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से बुद्धि का विकास होता है, स्मरण शक्ति तेज होती है और सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही गायत्री चालीसा एक प्रकार से कवच का कार्य करता है, जो नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है।

गायत्री चालीसा

ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचंड ॥

शांति क्रांति, जागृति प्रगति रचना शक्ति अखंड ॥1॥

जगत जननि मंगल करनि गायत्री सुख धाम ।

प्रणवों सावित्री, स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥2॥

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।

गायत्री निज कलिमल दहनी ॥॥

अक्षर चौबीस परम पुनीता ।

इनमें बसे शास्त्र श्रुति गीता ॥॥

शाश्वत सतोगुणी सतरूपा ।

सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥

हंसारूढ़ श्वेतांबर धारी ।

स्वर्ण कांति शुचि गगन-बिहारी ॥॥

पुस्तक, पुष्प, कमण्डलु, माला ।

शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥॥

ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।

सुख उपजत दुख-दुरमति खोई ॥॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।

निराकार की अद्भुत माया ॥॥

तुम्हारी शरण गहै जो कोई ।

तरै सकल संकट सों सोई ॥॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।

दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥

तुम्हारी महिमा पार न पावैं ।

जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥॥

चार वेद की मात पुनीता ।

तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥

महामंत्र जितने जग माहीं ।

कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।

आलस पाप अविद्या नासै ॥॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।

कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।

तुम सों पावें सुरता तेते ॥॥

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।

जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।

जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।

तुम सम अधिक न जग में आना ॥॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।

तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा ॥॥

जानत तुमहिं तुमहिं ह्वैजाई ।

पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥

तुम्हारी शक्ति दिपै सब ठाई ।

माता तुम सब ठौर समाई ॥॥

ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड घनेरे ।

सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥॥

सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।

पालक, पोषक, नाशक, त्राता ॥॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।

तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥

जा पर कृपा तुम्हारी होई ।

तापर कृपा करें सब कोई ॥॥

मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावै ।

रोगी रोग रहित हो जावैं ॥॥

दरिद मिटे, कटे सब पीरा ।

नाशै दुख हरै भव भीरा ॥॥

गृह क्लेश चित चिंता भारी ।

नासै गायत्री भय हारी ॥॥

संतति हीन सुसंतति पावें ।

सुख संपत्ति युत मोत मनावें ॥॥

भूत पिशाच सबै भय खावें ।

यम के दूत निकट नहिं आवें ॥॥

जो सधवा सुमिरे चित लाई ।

अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।

विधवा रहें सत्यव्रत धारी ॥॥

जयति जयति जगदंब भवानी ।

तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥

जो सतगुरु सों दीक्षा पावें ।

सो साधन को सफल बनावें ॥॥

सुमिरन करें सुरूचि बड़ भागी ।

लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥

अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।

सब समर्थ गायत्री माता ॥॥

ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी ।

आरत, अर्थी, चिंतन, भोगी ॥॥

जो जो शरण तुम्हारी आवै ।

सो सो मन वांछित फल पावेै ॥॥

बल, बुद्धि, विद्या, शील, स्वभाऊ ।

धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ ॥॥

सकल बढ़े उपजें सुख नाना ।

जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥

दोहा

यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करें जो कोय ।

तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥

पाठ की विधि और नियम

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, गायत्री चालीसा का पाठ करने से पहले कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है।

  • प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • पूजा स्थान को साफ करें और वहाँ माँ गायत्री की प्रतिमा या तस्वीर रखें।
  • सफेद या पीला आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  • पहले दीपक जलाएं, धूप और पुष्प अर्पित करें।
  • फिर एकाग्र चित्त होकर गायत्री चालीसा का पाठ करें।
  • पाठ के अंत में माँ से अपनी मनोकामनाएँ निवेदन रूप में रखें।
  • चालीसा पाठ करते समय गायत्री मंत्र का स्मरण करना श्रेष्ठ माना जाता है।
  • अगर नियमित रूप से पाठ न कर सकें, तो हर रविवार, पूर्णिमा या संध्याकाल में भी गायत्री चालीसा का पाठ करके इसका संपूर्ण फल प्राप्त कर सकते हैं।

गायत्री चालीसा के लाभ

  • चालीसा का पाठ करने से ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है।
  • पापों का नाश होता है और पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
  • भय, दुख और रोग दूर होते हैं।
  • मन और मस्तिष्क शांत होते हैं।
  • संतान की कामना रखने वालों को संतान सुख मिलता है।
  • रोगों से मुक्ति मिलती है और आरोग्यता प्राप्त होती है।
  • यश, कीर्ति और सफलता का मार्ग खुलता है।
  • ध्यान व साधना में एकाग्रता बढ़ती है।

तो ये थी ‘गायत्री चालीसा’ से जुड़ी विशेष जानकारी। जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक इस चालीसा का पाठ करते हैं, उन्हें माँ की कृपा से सुख, शांति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। आप भी इस लेख में बताई गई विधि के अनुसार माता गायत्री के इस चालीसा का पाठ करें।

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Published by Sri Mandir·September 18, 2025

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