हनुमान चालीसा पढ़ने से मिलते हैं ये 7 फायदे
हनुमान जी की महिमा और भक्तों के प्रति उनका परोपकारी स्वभाव के कारण ही श्री तुलसीदास जी ने संकटमोचक हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए श्री हनुमान चालीसा की रचना की। भक्तों में मान्यमा है कि इस चालीसा का नियमित रूप से पाठ करना ना सिर्फ सरल और आसान है, बल्कि इसके कई अद्भुत लाभ भी हैं।
यहां हम आपको श्री हनुमान चालीसा पढ़ने के प्रमुख लाभ के बारे में बता रहे हैं।
हनुमान चालीसा में हनुमान जी को अष्टसिद्धि और नवनिधि के दाता कहा गया है। इसका अर्थ है कि जो नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करता है। हनुमान जी उसको आठ सिद्धियां और नौ निधियों से संपन्न होने का आशीष प्रदान करते हैं।
जब भी आपके सामने आर्थिक संकट आए तो मन में हनुमान जी का ध्यान करते हुए हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर दें।
कुछ ही हफ्तों में आपको ना सिर्फ समस्या का समाधान मिलेगा बल्कि आर्थिक समस्या और चिंता भी दूर हो जाएगी। याद रखें कि किसी भी दिन कोई पाठ न छोड़ें। यह क्रम मंगलवार से शुरू हो तो अच्छा रहेगा।
'भूत पिशाच निकट नहीं आए, महावीर जब नाम सुनावे। अक्सर हम हनुमान चालीसा में इस दोहे का पाठ करते हैं। इनमें बताया गया है कि जो व्यक्ति नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसके आस-पास भूत-पिशाच और दूसरी नकारात्मक शक्तियां नहीं आती हैं।
जो व्यक्ति नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसका मनोबल बढ़ेगा और उसे कोई भय नहीं होगा।
यदि कोई अज्ञात भय सताता हो तो सोने से पहले हाथ-पैर धोकर शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर देना चाहिए।
यदि आप सोने के लिए जाते हैं और आपका मन अशांत रहता है, आपको ठीक से नींद नहीं आती है तो आप नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर दें।
ठीक से नींद न आने का एक मुख्य कारण मानसिक विकार है। हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति मिलती है और मन में चल रही उथल-पुथल से मुक्ति मिलती है, जिससे व्यक्ति को अच्छी नींद आती है और जीवन में आगे बढ़ने का मौका मिलता है।
हनुमान जी परम पराक्रमी और महावीर हैं, इस विषय का उल्लेख रणचरित मानस से लेकर हनुमान चालीसा तक में मिलता है।
इनके ध्यान से मनुष्य बलवान और पौरुषवान बनता है। जिन लोगों को बार-बार बीमारियाँ होती हैं या जिनकी बीमारी बहुत इलाज के बाद भी कम नहीं हो रही हो उन्हें नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
हनुमान चालीसा में लिखा भी गया है" नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।''
आपने देखा होगा कि मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में बड़ी संख्या में विद्यार्थी दर्शन के लिए आते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिन पर हनुमान जी की कृपा होती है वे बुद्धिमान, सदाचारी और ज्ञानी यानी बुद्धिजीवी बनते हैं।
हनुमान जी की कृपा पाने के लिए विद्यार्थियों को नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। विद्यार्थी जीवन में चालीसा का पाठ करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलती है।
इसका कारण यह है कि हनुमान जी स्वयं 'विद्यावान गुणी अति बुद्धिमान' हैं। राम की इच्छा काम करने की। जो लोग भक्ति भाव से हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं उनमें हनुमान जी इन गुणों का संचार करते हैं।
मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मुक्ति यानी शरीर त्यागने के बाद परमधाम माना जाता है। हनुमान चालीसा में लिखा है 'अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई।। और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।
अर्थात जो व्यक्ति हनुमान का ध्यान करता है, उनकी पूजा करता है और नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसका सर्वोच्च स्थान का मार्ग आसान हो जाता है।
।। दोहा।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
।। चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मुँज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे।।
लाय संजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हरी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटे सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गौसाईं।
वृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो त बार पाठ कर कोई।
छुटहि बंदि महासुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
।। दोहा।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
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