यह चालीसा विशेष रूप से गर्मी के मौसम में होने वाली बीमारियों से बचाव में सहायक होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
शीतला चालीसा देवी शीतला माता की स्तुति में रचित एक लोकप्रिय स्तोत्र है। जो भक्त इसे श्रद्धा भाव से पढ़ता है माता शीतला की उन भक्तों को कृपा प्राप्त होती है, जो विशेष रूप से रोगों से बचाने वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं। शीतला माता को मुख्य रूप से चेचक, बुखार और त्वचा संबंधी बीमारियों की देवी माना जाता है, और उनकी आराधना से स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
जय जय माता शीतला, तुमहिं धरै जो ध्यान ।
होय विमल शीतल हृदय, विकसै बुद्धी बल ज्ञान ॥
घट-घट वासी शीतला, शीतल प्रभा तुम्हार ।
शीतल छइयां में झुलई, मइयां पलना डार ॥
जय-जय-जय श्री शीतला भवानी ।
जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित ।
पूरण शरदचंद्र समसाजित ॥
विस्फोटक से जलत शरीरा ।
शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
मात शीतला तव शुभनामा ।
सबके गाढे आवहिं कामा ॥
शोक हरी शंकरी भवानी ।
बाल-प्राणक्षरी सुख दानी ॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै ।
मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
चौसठ योगिन संग में गावैं ।
वीणा ताल मृदंग बजावै ॥
नृत्य नाथ भैरौं दिखलावैं ।
सहज शेष शिव पार ना पावैं ॥
धन्य धन्य धात्री महारानी ।
सुरनर मुनि तब सुयश बखानी ॥
ज्वाला रूप महा बलकारी ।
दैत्य एक विस्फोटक भारी ॥
घर घर प्रविशत कोई न रक्षत ।
रोग रूप धरी बालक भक्षत ॥
हाहाकार मच्यो जगभारी ।
सक्यो न जब संकट टारी ॥
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा ।
कर में लिये मार्जनी सूपा ॥
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्हो ।
मूसल प्रमाण बहुविधि कीन्हो ॥
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा ।
मैय्या नहीं भल मैं कछु कीन्हा ॥
अबनहिं मातु काहुगृह जइहौं ।
जहँ अपवित्र वही घर रहि हो ॥
अब भगतन शीतल भय जइहौं ।
विस्फोटक भय घोर नसइहौं ॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याना ।
वचन सत्य भाषे भगवाना ॥
पूजन पाठ मातु जब करी है ।
भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई ।
भजै देवि कहँ यही उपाई ॥
कलश शीतलाका सजवावै ।
द्विज से विधीवत पाठ करावै ॥
तुम्हीं शीतला, जगकी माता ।
तुम्हीं पिता जग की सुखदाता ॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी ।
नमो नमामी शीतले देवी ॥
नमो सुखकरनी दु:खहरणी ।
नमो- नमो जगतारणि धरणी ॥
नमो नमो त्रलोक्य वंदिनी ।
दुखदारिद्रक निकंदिनी ॥
श्री शीतला , शेढ़ला, महला ।
रुणलीहृणनी मातृ मंदला ॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी ।
शोभित पंचनाम असवारी ॥
रासभ, खर , बैसाख सुनंदन ।
गर्दभ दुर्वाकंद निकंदन ॥
सुमिरत संग शीतला माई,
जाही सकल सुख दूर पराई ॥
गलका, गलगन्डादि जुहोई ।
ताकर मंत्र न औषधि कोई ॥
एक मातु जी का आराधन ।
और नहिं कोई है साधन ॥
निश्चय मातु शरण जो आवै ।
निर्भय मन इच्छित फल पावै ॥
कोढी, निर्मल काया धारै ।
अंधा, दृग निज दृष्टि निहारै ॥
बंध्या नारी पुत्र को पावै ।
जन्म दरिद्र धनी होइ जावै ॥
मातु शीतला के गुण गावत ।
लखा मूक को छंद बनावत ॥
यामे कोई करै जनि शंका ।
जग मे मैया का ही डंका ॥
भगत ‘कमल’ प्रभुदासा ।
तट प्रयाग से पूरब पासा ॥
ग्राम तिवारी पूर मम बासा ।
ककरा गंगा तट दुर्वासा ॥
अब विलंब मैं तोहि पुकारत ।
मातृ कृपा कौ बाट निहारत ॥
पड़ा द्वार सब आस लगाई ।
अब सुधि लेत शीतला माई ॥
यह चालीसा शीतला, पाठ करे जो कोय ।
सपनें दुख व्यापे नही, नित सब मंगल होय ॥
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल, भाल भल किंतू ।
जग जननी का ये चरित, रचित भक्ति रस बिंतू ॥
॥ इति श्री शीतला चालीसा ॥
शीतला मां को अष्टमी देवी के नाम से पूजा जाता है। शीतला चालीसा का पाठ करने से बीमारियों से मुक्ति, मानसिक शांति और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इसके साथ ही इस चालीसा को पढ़ने से दुष्ट शक्तियों का नाश होता है और परिवार में शांति बनी रहती है। विशेष रूप से शीतला सप्तमी, शीतला अष्टमी और गर्मी के मौसम में इसका महत्व बढ़ जाता है। यह चालीसा व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आरोग्य लाने में सहायक है।
शीतला चालीसा का पाठ विशेष रूप से शुक्रवार को किया जाता है, क्योंकि यह दिन शीतला माता के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इसके अलावा, शीतला अष्टमी के दिन भी चालीसा का पाठ करना लाभकारी होता है। शीतला माता की पूजा और चालीसा का पाठ सुबह ब्रह्म मुहूर्त में करना सबसे शुभ माना जाता है।
शीतला चालीसा में माता शीतला के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन किया गया है। चालीस में माता के हाथों में कलश, झाड़ू और सूप (सूपड़ा) धारण करते हुए बताया गया है। तो वहीं, माता नीम के पत्तों की माला धारण भी करती हैं। इसके साथ ही चालीसा में गर्दभ की सवारी करते हुए और अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
शीतला चालीसा का पाठ करते समय हमें शुद्ध मन और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। चालीसा का उच्चारण सही तरीके से और बिना किसी व्यवधान के करना जरूरी होता है। पाठ से पहले नाता शीतला का ध्यान करें और उनका आशीर्वाद लें। इसके अलावा, पाठ करते समय एकाग्रता बनाए रखें और पवित्रता का पूरा ध्यान रखें। साथ ही किसी जानकार पंडित से भी इनकी पूजा-पाठ के बारे में अवश्य जान लें।
शीतला चालीसा और शीतला अष्टक में मुख्य अंतर यह है कि शीतलाष्टक स्तोत्र भगवान शिव द्वारा रचित है, जिसमें मां शीतला की महिमा और कृपा का वर्णन है। इसका नियमित रूप से पाठ करने से शरीर स्वस्थ रहता है और रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीं, शीतला चालीसा देवी शीतला को समर्पित है। इस चालीसा का पाठ बीमारियों और संक्रामक रोगों से मुक्ति दिलाता है। साथ ही इसके पाठ से देवी शीतला प्रसन्न भी होती हैँ।
हां, यह माना जाता है कि शीतला चालीसा का पाठ करने से महामारी और संक्रामक रोगों से बचाव हो सकता है। शीतला माता को संक्रामक रोगों से रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। विशेष रूप से यह चालीसा उन बीमारियों से बचाव में मदद करती है, जो संक्रमण या महामारी के रूप में फैलती हैं। इसलिए इस चालीसा का नियमित पाठ संक्रामक रोगों से बचाव में सहायक माना जाता है।
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