षष्ठी श्राद्ध क्या होता है? | Shashthi Shradh Kya Hai
15 दिन के पितृपक्ष के दौरान पितरों का ध्यान करके उनके नाम से तर्पण किया जाता है। इसके अलावा जिस तिथि पर उनका स्वर्गवास हुआ था, उसी दिन उनके निमित्त श्राद्ध और पिंडदान करने का विधान है। प्रतिपदा से लेकर सर्वपितृ अमावस्या तक पितरों की आत्मा की शांति के लिए कामना की जाती है। इसी तरह षष्ठी श्राद्ध उन पितरों को समर्पित है, जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि पर हुई थी।
षष्ठी श्राद्ध कब है? | Shashthi Shradh Date & Muhurt
- षष्ठी श्राद्ध 23 सितंबर, सोमवार को किया जाएगा।
- षष्ठी तिथि 22 सितंबर, दोपहर 03 बजकर 43 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- षष्ठी तिथि का समापन 23 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 50 मिनट पर होगा।
- कुतुप मुहूर्त दिन में 11 बजकर 26 मिनट से दोपहर 12 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।
- रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 01 बजकर 03 मिनट तक रहेगा।
- अपराह्न काल मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 03 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
षष्ठी श्राद्ध कैसे करें? | Shashthi Shradh Kaise Kare
- षष्ठी तिथि के दिन पितरों का श्राद्ध करने के लिए सबसे पहले स्नान करके शुद्ध हो जाएं। इसके बाद जिस स्थान पर श्राद्ध करनी है, वहां भी गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लें।
- इसके बाद किसी विद्वान ब्राह्मण के द्वारा बताई गई विधि के अनुसार अपने पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करें।
- इस दिन घर की स्त्रियों को अपने पितरों की पसंद का भोजन बनाना चाहिए।
- इस भोजन की सबसे पहले पंचबलि निकालें, अर्थात भोजन में से गाय, कौवा, कुत्ता, चींटी, आदि के लिए भी एक-एक अंश निकालें।
- पितृपक्ष के दौरान किसी भी पशु-पक्षी का अनादर न करें, वरना पितृ आपसे नाराज हो सकते हैं।
- द्वार पर आए पशु-पक्षियों को भोजन व जल दें, क्योंकि कहा गया है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वज किसी भी रूप में अपने परिजनों से मिलने आ सकते हैं।
- सभी जीवो को उनका अंश देने के बाद ब्राह्मण को भी सम्मानपूर्वक भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- पुराणों में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने वाले जातक को सात्विक रहने का निर्देश दिया गया है।
- इस दौरान श्राद्ध में हुई किसी भी भूल-चूक के लिए पितरों से क्षमा मांगें, और उनसे परिवार पर अपना आशीर्वाद बनाए रखने की प्रार्थना करें।
षष्ठी श्राद्ध का महत्व | Shashthi Shradh Ka Mahatav
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु लोक और स्वर्ग लोक के अलावा भी एक लोक है, जिसे ‘पितृ लोक’ कहा जाता है। मान्यता है कि मृत्यु के बाद हमारे पूर्वज इसी लोक में निवास करते हैं। वर्ष भर में पितृपक्ष एक ऐसा समय होता है, जब पितृ लोक से सभी पूर्वज पृथ्वी लोक पर अपने वंशजों से मिलने आते हैं। इस दौरान यदि उनकी मृत्यु तिथि पर उनके निमित्त श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया जाए, तो उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए ‘षष्ठी श्राद्ध’ भी विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर हुई हो। मान्यता है कि श्राद्ध पिंडदान व तर्पण से उन्हें जल व भोजन प्राप्त होता है, जिससे उनकी आत्मा वर्ष भर के लिए संतुष्ट हो जाती है। कहते हैं कि यदि पितृ प्रसन्न हों, तो परिवार पर सदा उनका आशीर्वाद बना रहता है, और पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।
वहीं, जो परिवार अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते हैं, उनके पितृ पितृपक्ष में पृथ्वी लोक पर तो आते हैं, लेकिन 15 दिन के बाद उनकी आत्मा भूख-प्यास से तड़पती हुई फिर से पितृ लोक जाती है, जिससे पितृ अपने परिवार के लोगों से नाराज़ हो जाते हैं, और उन्हें श्राप दे देते हैं। कहा जाता है कि पितरों के श्राप से व्यक्ति के जीवन में धन-संपत्ति, स्वास्थ्य, संतान, नौकरी-व्यापार आदि से जुड़ी कई समस्याएं आ सकती हैं। यही कारण है कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है।