शिव चालीसा क्या है ? (What is Shiv Chalisa?)
सनातन धर्म में मंत्रों और स्त्रोतों के द्वारा भक्त अपने इष्ट की पूजा-अर्चना करते हैं। ईश्वर की भक्ति के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनमें इन मंत्रों और स्त्रोतों का महत्व है। मंत्रों, स्त्रोतों की भाषा थोड़ी कठिन, जिस वजह से भक्तों ने इष्ट की पूजा के लिए चालीसा की रचना की। चालीसा में 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसे चालीसा कहा जाता है। इसकी भाषा सरल होती है, इसलिए इसे हर व्यक्ति आसानी से पढ़ सकता है। शिव चालीसा में भोलेनाथ की महिमा का बखान बखूबी किया गया है। ऐसा माना गया है की शिव चालीसा के जाप से भय और कष्टों से मुक्ति मिलती है। शिव चालीसा का लयबद्ध पाठ करने से भगवान शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शिव चालीसा किसने और क्यों लिखी ? (Who wrote Shiv Chalisa and why?)
शिव चालीसा का पाठ महादेव को प्रसन्न करने का बेहद ही प्रभावशाली उपाय माना जाता है। महादेव को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में शिव चालीसा का उल्लेख मिलता है। शिव चालीसा का पाठ पवित्र ग्रंथ देववाणी संस्कृत में लिखी गई है, देववाणी में 24 हजार श्लोक हैं। शिव चालीसा में चालीस पंक्तियां हैं, जिनमें देवों के देव महादेव शिव की स्तुतिगान है। कहते हैं इसे चालीस बार लयबद्ध पाठ करने से भगवान शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शिव चालीसा को शिव पुराण से लिया गया है और शिव पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास हैं।
शिव चालीसा का महत्व (Importance of Shiv Chalisa)
पुराणों में बताया गया है कि शिव भक्ति भक्ति के साथ शिव चालीसा का नियमित जाप व्यक्ति के जीवन से सभी बाधाओं और समस्याओं को दूर करने की शक्ति रखता है। शिव चालीसा का जाप नियमित रूप से करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। मन में अशान्ति, शादी, नौकरी, शत्रु से जुड़े कष्ट भोलेनाथ की भक्ति और शिव चालीसा के पाठ से खत्म हो जाते हैं।
शिव चालीसा कैसे पढ़ें ? (How to read Shiv Chalisa?)
- शिव चालीसा का पाठ करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनकर पूर्व दिशा की ओर मुख कर कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
- शिव चालीसा भगवान शिव की मूर्ति स्थापित करें और उसके समक्ष घी का दीपक जलाएं। मूर्ति के पास तांबे के लोटे में साफ जल में गंगाजल मिलाकर रख दें। इसके बाद भगवान शिव का ध्यान करें।
- भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते समय सफेद चंदन, चावल, कलावा, धूप-दीप, पुष्प, माला और शुद्ध मिश्री को प्रसाद के लिए रखें।
- शिव चालीसा का पाठ करने से गाय के घी का दीप जलाएं और एक कलश में शुद्ध जल भरकर कलश की स्थापना करें।
- शिव चालीसा का पाठ लयबद्ध तरीके से करना चाहिए।
- पाठ पूरा हो जाने पर कलश का जल सारे घर में छिड़क दें।
शिव चालीसा पढ़ने के 10 लाभ (benefits of reading Shiv Chalisa)
- शिव चालीसा के पाठ से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- शिव चालीसा के पाठ करने से जातक के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
- शिव चालीसा के पाठ विधि और नियम के अनुसार करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
- शिव चालीसा का जाप करने से मन व शरीर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- शिव चालीसा का रोजाना पाठ करने से ग्रहों के बुरे प्रभाव दूर होते हैं।
- रोज शिव चालीसा का पाठ करने से से घर में खुशहाली आती है।
- शिव चालीसा के पाठ से व्यापार व नौकरी दोनों में तरक्की मिलती है।
- रोगों से मुक्ति के लिए भी शिव चालीसा का निरंतर पाठ करना चाहिए।
- शिव चालीसा के पाठ करने से शत्रु बाधा का निवारण होता है।
- संतान की प्राप्ति के लिए शिव चालीसा का नियमित पाठ करना चाहिए।
शिव चालीसा पढ़ते समय न करें ये काम (Don't do these things while reading Shiv Chalisa)
- बिना स्नान किए शिव चालीसा का पाठ नहीं करना चाहिए।
- शिव चालीसा का पाठ करने समय शंख नहीं बजाना चाहिए।
- शंकर जी को कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाएं।
- शिवजी को कभी भी केतकी के फूल नहीं चढ़ाएं।
- भगवान शिव की पूजा में काला तिल, हल्दी, सिंदूर और कुमकुम नहीं चढ़ाना चाहिए।
शिव चालीसा (Shiv Chalisa in hindi)
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥ कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥ कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥ दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥ स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥ अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥ योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥ जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥ पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥ त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥ मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥