रांची में घूमने की जगह ढूंढ रहे हैं? जानिए शहर के उन प्रमुख धार्मिक और प्राकृतिक स्थलों के बारे में, जिन्हें देखे बिना रांची यात्रा अधूरी मानी जाती है।
अगर आप रांची गए हैं और इन मंदिरों को नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। रांची केवल प्राकृतिक सुंदरता से ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक गहराइयों के लिए भी प्रसिद्ध है। चलिए इस आर्टिकल में हम रांची के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जानते हैं।
सदियों पुरानी परंपराएं, शक्तिपीठ, योग स्थल और तीर्थस्थल मिलकर रांची को एक ऐसा दिव्य नगर बनाते हैं जहाँ भक्तों को आत्मिक शांति और ईश्वरीय सान्निध्य दोनों प्राप्त होता है। यहाँ हर मंदिर, हर आश्रम एक अदृश्य ऊर्जा से जुड़ा है, जो साधक को भीतर से जोड़ता है। रांची वास्तव में एक आध्यात्मिक रूप से समृद्ध नगरी है – जहाँ श्रद्धा, साधना और संस्कार एक साथ सांस लेते हैं।
स्थान: रांची की पहाड़ी पर, करीब 2140 फीट की ऊंचाई पर।
मुख्य देवता: भगवान शिव
विशेषता: एकलौता ऐसा मंदिर जहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फैलाया जाता है।
रांची का पहाड़ी मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो शहर के मध्य एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर लगभग 2140 फीट की ऊँचाई पर बना है, जहां पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को करीब 468 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। वेदों और पुराणों में शिव को पर्वतों पर पूजनीय बताया गया है, और यह स्थान स्थानीय रूप से कैलाश के रूप में श्रद्धेय माना जाता है।
इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। ब्रिटिश शासनकाल में यह स्थल फाँसीघर था, जहाँ स्वतंत्रता सेनानियों को फाँसी दी जाती थी। आज भी यहाँ हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराया जाता है, जो इसे देशभक्ति और भक्ति का अनूठा संगम बनाता है। महाशिवरात्रि और श्रावण मास में यहाँ लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि आत्मबल, ध्यान और श्रद्धा का ऊर्जा केंद्र भी है।
स्थान: अपर बाजार, रांची
मुख्य देवता: मां दुर्गा
विशेषता: बंगाली समाज द्वारा निर्मित यह मंदिर दुर्गा पूजा के समय बेहद प्रसिद्ध होता है। यह एक शांत और भक्ति से भरपूर स्थल है।
रांची के अपर बाजार क्षेत्र में स्थित देवी दुर्गा बाड़ी मंदिर लगभग एक सदी से अधिक पुराना है और बंगाली समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था। यह मंदिर अपनी भव्य दुर्गा पूजा के लिए प्रसिद्ध है, जहां हर वर्ष विजयादशमी के अवसर पर विशेष अनुष्ठान और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मंदिर परिसर में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित है, जहां भक्तगण नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर पूजा-अर्चना करते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि रांची की सांस्कृतिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्थान: रांची के धुर्वा क्षेत्र में स्थित
मुख्य देवता: भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा
विशेषता: यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर बना है। यहां भी रथ यात्रा उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
रांची का जगन्नाथ मंदिर 1691 में नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर रांची से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है और इसकी वास्तुकला पुरी के जगन्नाथ मंदिर से मिलती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
हर वर्ष आषाढ़ मास में रथ यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। 1990 में मंदिर का ढांचा ढह गया था। जिसे 1992 में पुनः निर्मित किया गया। यहां से पूरे रांची शहर का सुंदर दृश्य दिखता है और यह स्थल भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति का केंद्र है।
स्थान: हरमू रोड, रांची
मुख्य देवता: श्री राम, सीता, हनुमान, शिव, पार्वती, राधा-कृष्ण आदि
विशेषता: यह एक बहुदेवता मंदिर है जो खासकर आरती और भजन संध्या के लिए लोकप्रिय है।
रांची का सनातन मंदिर एक ऐसा पवित्र स्थल है, जहाँ सनातन धर्म की व्यापकता और दिव्यता झलकती है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि आत्मिक शांति और भक्ति का सजीव अनुभव भी कराता है। यहाँ भगवान राम, माता सीता, हनुमानजी, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती सहित अनेक देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर की आरती, भजन और संध्याकालीन दीपमालिका भक्तों को एक अलौकिक ऊर्जा से भर देती है। हर पर्व और उत्सव यहाँ बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। यह स्थान भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक आश्रय है, जहाँ मन को स्थिरता और आत्मा को दिव्यता प्राप्त होती है।
स्थान: रामगढ़ जिले में, रांची से लगभग 80 किलोमीटर दूर।
मुख्य देवता: छिन्नमस्तिका देवी
विशेषता: दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ, असम के कामाख्या मंदिर के बाद
छिन्नमस्तिका मंदिर, जिसे रजरप्पा मंदिर भी कहते हैं। झारखंड के रामगढ़ में भैरवी और दामोदर नदियों के संगम पर स्थित है। यह शक्तिपीठ देवी छिन्नमस्ता को समर्पित है, जो स्वयं का सिर काटकर तीन धाराओं में रक्त बहाती हैं। दो अपनी सहेलियों और एक स्वयं के लिए। यह मंदिर कामदेव और रति पर खड़ी देवी के उग्र रूप को दर्शाता है। इसकी वास्तुकला असम के कामाख्या मंदिर से मिलती है। यहाँ महाकाली, बजरंगबली, सूर्य सहित अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। नवरात्रि में यहाँ तांत्रिक साधना और भक्ति का विशेष महत्व होता है।
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