सूरत में घूमने की जगह
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सूरत में घूमने की जगह

सूरत में घूमने की जगह ढूंढ रहे हैं? जानिए उन खास मंदिरों और स्थलों के बारे में, जो हर श्रद्धालु और पर्यटक को एक बार ज़रूर देखने चाहिए।

सूरत के मंदिरों के बारे में

सूरत को अक्सर उसके उद्योग, स्वादिष्ट व्यंजन और आधुनिक जीवनशैली के लिए जाना जाता है, लेकिन इस शहर में छिपे हुए हैं कई प्राचीन और भव्य मंदिर जो श्रद्धा, इतिहास और वास्तुकला का अनमोल संगम हैं, जिसे हम इस आर्टिकल में विस्तार से जानेंगे।

सूरत में घूमने की जगह: जानें सूरत के प्रमुख मंदिरों के बारे में

सूरत सिर्फ व्यापार, फैशन और उद्योग का केंद्र नहीं है, बल्कि यह ध्यान, साधना और संत परंपरा की ज़मीन भी है। यहाँ सनातन, जैन, सूफी और वैष्णव परंपराओं का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। सूरत को "सौराष्ट्र का साधना केंद्र" भी कहा गया है, जहाँ प्राचीन काल से संतों और तपस्वियों ने निवास किया। ताप्ती नदी, जो सूरत की जीवनरेखा है, वेदों में पवित्र नदियों में मानी जाती है। यहाँ इसके किनारे कई प्राचीन मंदिर और घाट बने हैं जहाँ आज भी पूजा-पाठ और ध्यान होता है। यह शहर वो स्थान है जहाँ ध्यान और धन, भक्ति और व्यावहारिकता, और आधुनिकता और परंपरा एक साथ चलते हैं।

तो अगर आप सूरत घूमने जा रहे है, तो इस दिव्य आध्यात्मिक शहर के दिव्य मंदिरों को घूमना न भूलें।

1. अंबिका निकेतन मंदिर

सूरत की ताप्ती नदी के किनारे स्थित एक अत्यंत पूजनीय स्थल है, जो माँ अंबा को समर्पित है। यह मंदिर शक्ति साधना, भक्ति, और माँ के मातृ रूप की दिव्यता का केंद्र है। माँ अंबिका को शक्ति की आदिशक्ति, सृष्टि की रचयिता और अविद्या नाशिनी कहा गया है। 1969 में बना यह मंदिर अंबिका सेवा ट्रस्ट द्वारा स्थापित किया गया था।

मंदिर का गर्भगृह माँ अंबा की सुंदर मूर्ति से सुसज्जित है, जो देवी को सिंहवाहिनी, त्रिशूलधारिणी और अभय मुद्रा में दर्शाती है। माँ अंबा का यह स्वरूप माँ के सौम्य और उग्र शक्ति दोनों के संतुलन को दर्शाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि जो भक्त सच्चे मन से माँ अंबा की आराधना करता है, उसे भय, रोग और मानसिक अशांति से मुक्ति मिलती है। इस मंदिर को कामना सिद्धि स्थल के रूप में भी माना जाता है। भक्त यहाँ आकर खासकर विवाह, संतान, और रोग निवारण के लिए माँ से प्रार्थना करते हैं।

2. इस्कॉन मंदिर

भगवान कृष्ण के जीवन को दर्शाने वाला यह मंदिर अद्वितीय और अलौकिक है।  मंदिर का मुख्य गर्भगृह श्री राधा-माधव को समर्पित है। जहाँ भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण मूर्तियाँ विराजमान हैं। 

यहाँ प्रतिदिन मंगल आरती, जप योग, कीर्तन, और भागवत कथा का आयोजन होता है। यहाँ भक्तों को वेद, उपनिषद, भगवद्गीता और भागवत पुराण की शिक्षाओं पर आधारित सत्संग, योग और ध्यान की शिक्षा दी जाती है।

जन्माष्टमी का पर्व यहाँ अत्यंत भव्यता और दिव्यता के साथ मनाया जाता है। 

हजारों श्रद्धालु रातभर श्रीकृष्ण जन्म का महोत्सव मनाते हैं। जन्माष्टमी के अलावा यहाँ राधाष्टमी, गोवर्धन पूजा, झूलन उत्सव, आदि भी बड़े हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं।

3. श्री आशापुरी माताजी एवं वरीनाथ महादेव मंदिर

यह मंदिर माँ आशापुरी, जो देवी शक्ति का एक दिव्य और करुणामयी रूप हैं, एवं श्री वरीनाथ महादेव, जो शिव के तांत्रिक और कल्याणकारी स्वरूप हैं, दोनों को समर्पित है। इस दुर्लभ संयोजन को हिंदू धर्म में शक्ति और शिव के अद्वितीय मिलन का प्रतीक माना जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह की पूर्णिमा को यहाँ विशेष पूजन, भजन और आरती का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। साल में आने वाली सभी नवरात्रियों में, चैत्र नवरात्रि यहाँ अत्यंत भव्यता से मनाई जाती है। नौ दिनों तक माँ आशापुरी का दिव्य श्रृंगार, राजभोग, गरबा, और आरती की झलकियाँ श्रद्धालुओं के मन को भाव-विभोर कर देती हैं।

मंदिर में स्थापित वरिनाथ महादेव का शिवलिंग अत्यंत पुरातन है, जिसे सदैव स्वयंभू और इच्छा पूर्ति स्वरूप माना गया है।

4. इच्छानाथ महादेव मंदिर

सूरत के पिपलोद क्षेत्र में स्थित यह मंदिर, भगवान शिव के इच्छा पूर्ति स्वरूप को समर्पित है। यहाँ भगवान शिव स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। शिव के इस दिव्य स्वरूप का उल्लेख शिव महापुराण में कामेश्वर या इच्छानाथ रूप में किया गया है। वेदों में शिव को त्र्यंबकं, महादेव, और कामनाश्वर कहा गया है, जो हर जीव की इच्छाओं, कर्मों और मोक्ष के अधिपति हैं।

मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से जल अर्पित करता है, उसकी हर मनोकामना जरूर पूर्ण होती है। यहाँ रोज़ाना श्रद्धालु जलाभिषेक, बिल्वपत्र अर्पण, और रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करते हैं। इस मंदिर का परिसर शांत, शुद्ध और दिव्य ऊर्जा से भरपूर है। महाशिवरात्रि के समय में इस मंदिर का अलौकिक स्वरूप देखते ही किसी का भी मन मोह लेता है। 

5. चिंतामणि मंदिर

चिंतामणि जैन मंदिर गुजरात के अहमदाबाद शहर में स्थित है और यह श्वेतांबर जैन समुदाय का एक अति प्राचीन एवं श्रद्धेय तीर्थ है। यह मंदिर भगवान शांतिनाथ, जैन धर्म के 16वें तीर्थंकर को समर्पित है। 

यह मंदिर लगभग 600 वर्षों से भी अधिक प्राचीन माना जाता है, जिसकी नींव सोलंकी वंश के काल में रखी गई थी। यह स्थान जैन तीर्थयात्रियों के लिए उतना ही पवित्र है जितना कि सनातन वेदों में वर्णित तीर्थ स्थल। यहाँ शुद्ध ज्ञान, तप और ध्यान की परंपरा आज भी जीवित है।

मंदिर का निर्माण संगमरमर और लाल पत्थरों से हुआ है, जिसकी नक्काशी अत्यंत बारीक और अद्वितीय है। यहाँ के गर्भगृह में विराजमान भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा ध्यानमग्न मुद्रा में है, जो आंतरिक शांति और मोक्ष का प्रतीक है। मंदिर के चारों ओर बनी छोटी-छोटी वेदियां अन्य तीर्थंकरों को समर्पित हैं। जो जैन धर्म की समग्रता को दर्शाती हैं।

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Published by Sri Mandir·April 22, 2025

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