होली पूजा में आरती का विशेष महत्व है! जानिए संपूर्ण होली आरती पाठ, इसके लाभ और सही विधि, जिससे आपकी होली हो और भी शुभ और मंगलमय।
होली की आरती भक्तिभाव से गाई जाती है, जिसमें भगवान नरसिंह और प्रह्लाद की कथा का महत्व बताया जाता है। इस आरती में बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है। श्रद्धालु गुलाल, फूल और दीप जलाकर आरती करते हैं, जिससे प्रेम और सौहार्द्र बढ़ता है।
होली भारत के सबसे उल्लासपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह न केवल रंगों की बौछार और विभिन्न तरह के पकवानों का त्योहार है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी बहुत गहरा है। होली का त्योहार भक्ति, प्रेम, भाईचारे और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस पर्व की शुरुआत होलिका दहन से होती है, जिसमें अग्नि के चारों ओर परिक्रमा कर विशेष आरती की जाती है। इस लेख में हम होली की आरती के महत्व, विधि और इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।
होलिका दहन के दौरान की जाने वाली आरती का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि आरती करने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मकता का संचार होता है। यह होलिका दहन का अटूट का हिस्सा है। आरती करने से भगवान नारायण और भक्त प्रह्लाद का आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
ॐ जय नरसिंह हरे,
प्रभु जय नरसिंह हरे ।
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
जनका ताप हरे ॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥
तुम हो दिन दयाला,
भक्तन हितकारी,
प्रभु भक्तन हितकारी ।
अद्भुत रूप बनाकर,
अद्भुत रूप बनाकर,
प्रकटे भय हारी ॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥
सबके ह्रदय विदारण,
दुस्यु जियो मारी,
प्रभु दुस्यु जियो मारी ।
दास जान आपनायो,
दास जान आपनायो,
जनपर कृपा करी ॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥
ब्रह्मा करत आरती,
माला पहिनावे,
प्रभु माला पहिनावे ।
शिवजी जय जय कहकर,
पुष्पन बरसावे ॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
होली की आरती करने से हमारे जीवन में सकारात्मकता और शुभता बनी रहती है। इस पावन अवसर पर हम सबको अपने भीतर की बुराइयों को जलाकर भक्ति और प्रेम का प्रकाश फैलाना चाहिए। होली से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी श्री मंदिर पर उपलब्ध है। इसका लाभ अवश्य लें। आप सभी को हैप्पी होली!
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