क्या आप जानते हैं चंडी देवी कवच के नियमित पाठ से सभी बाधाओं से सुरक्षा मिलती है? जानें इसका श्लोक, पाठ विधि और चमत्कारी लाभ।
चंडी कवच एक प्राचीन हिन्दू शास्त्र है, जो देवी चंडी के शक्तिशाली रूप की पूजा और सुरक्षा के लिए मंत्रों का समूह है। इसे देवी भागवतम में वर्णित किया गया है। यह कवच भक्तों को शत्रुओं से रक्षा, मानसिक शांति और बल प्रदान करने के लिए माना जाता है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
चंडी कवच देवी दुर्गा के शक्ति रूप की स्तुति करने वाला एक शक्तिशाली स्तोत्र है। इसे पढ़ने और सुनने से नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है और व्यक्ति के आत्मबल में वृद्धि होती है। यह कवच देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) का एक भाग है और इसमें देवी चंडी की कृपा पाने के लिए प्रार्थना की जाती है।
ॐ मार्कण्डेय उवाच।
ॐ मार्कण्डेय उवाच।
यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने।
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम्।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गे चैव भयार्ताः शरणं गताः।
न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं नहि।
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां सिद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना।
माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया।
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता।
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिता।
दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेयामग्निदेवता।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैरृत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्वायव्यां मृगवाहिनी।
उदीच्यां रक्ष कौबेरि ईशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी मे रक्षेदधस्ताद्वैष्णवी तथा।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे अग्रतः स्थातु विजया स्थातु पृष्ठतः।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखां मे द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद्यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके।
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शाङ्करी।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती।
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठमध्ये तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी।
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीस्तथा।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत् कुक्षौ रक्षेन्नलेश्वरी।
स्तनौ रक्षेन्महालक्ष्मीर्मनःशोकविनाशिनी।
हृदये ललितादेवी उदरे शूलधारिणी।
नाभौ च कामिनी रक्षेद्गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला प्रोक्ता सर्वकामप्रदायिनी।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादौ चामिततेजसी।
पादाङ्गुलीः श्रीर्मे रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी।
नखान्दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा।
रक्तमज्जावमांसान्यस्थिमेदांसी पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चुडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वाला अभेद्या सर्वसन्धिषु।
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्ष मे धर्मचारिणि।
प्राणापानौ तथा व्यानं समानोदानमेव च।
वज्रहस्ता च मे रेक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा।
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी।
गोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी।
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्राधिगच्छति।
तत्र तत्रार्थ लाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्।
निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रामेष्व पराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्।
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोकेष्व पराजितः।
जीवेद्वर्षशतं साग्रमपमृत्यु विवर्जितः।
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम्।
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः।
सहजाः कुलजा मालाः शाकिनी डाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः।
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद्राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा।
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपौत्रकी।
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः।
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते।
यह कवच नकारात्मक ऊर्जाओं, काले जादू और बुरी नजर से रक्षा करता है। शत्रुओं के षड्यंत्र से बचाव होता है।
चंडी कवच का पाठ मन को शांति और आत्मबल प्रदान करता है। किसी भी प्रकार के अनजाने भय और चिंता को दूर करता है।
इसे नियमित रूप से पढ़ने से स्वास्थ्य में सुधार होता है। असाध्य रोगों में भी देवी कृपा से राहत मिलती है।
व्यापार और नौकरी में उन्नति होती है। आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है और धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिए यह पाठ लाभकारी होता है। परिवार में प्रेम, सौहार्द और सुख-शांति बनी रहती है।
यदि कुंडली में शनि, राहु-केतु या अन्य ग्रह दोष हैं, तो चंडी कवच का पाठ करने से राहत मिलती है। विशेष रूप से शनि की साढ़े साती और ढैया में इसे पढ़ने से शुभ परिणाम मिलते हैं।
जीवन में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने में यह कवच सहायक होता है। देवी का यह स्तोत्र सभी प्रकार की परेशानियों को समाप्त करता है।
ब्राह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) या संध्या समय (शाम 6-8 बजे) सबसे उत्तम समय होता है। नवरात्रि, अष्टमी, नवमी, पूर्णिमा, अमावस्या या मंगलवार, शनिवार को विशेष फलदायी होता है।
"ॐ नमश्चण्डिकायै।
मार्कण्डेय उवाच।
ॐ यद्यच्छ्रुणु मुनिश्रेष्ठ कवचं परमाद्भुतम्।
येन गुप्तः सगणो राघवो संगतान्जितः॥"
पूर्ण श्रद्धा और ध्यान के साथ पूरा पाठ करें।
देवी स्तुति और प्रार्थना करें :
"या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
चंडी कवच पाठ विधिपूर्वक करने से सभी प्रकार की बाधाएं, रोग, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती हैं। यह देवी दुर्गा की अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है, जिससे भक्त को अद्भुत आत्मबल, सुरक्षा और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। जय माता दी।
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