क्या आप वाणी में प्रभाव, संगीत-कला में सिद्धि और मन की स्थिरता चाहते हैं? मातंगी कवच का पाठ इन सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। जानें इसकी पाठ विधि और आध्यात्मिक लाभ।
दस महाविधाओं में मातंगी नौवीं महाविधा के रूप में जानी जाती हैं, जिन्हें प्रकृति की स्वामिनी भी कहा जाता है। मातंगी कवच का पाठ करने से व्यक्ति संगीत, वाणी, ज्ञान, विद्या और कला में निपुण होता है। यह कवच रोजाना विधिपूर्वक पढ़ने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यदि आप इस कवच के लाभ के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो पढ़िए हमारे इस लेख को और जानिए इस चमत्कारी कवच के लाभ और इसकी पूजन विधि के बारे में।
मातंगी कवच, देवी मातंगी को समर्पित एक शक्तिशाली रक्षात्मक मंत्र है। यह कवच व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार से लाभ प्रदान करता है। जब इस कवच का सही विधि से पाठ किया जाता है तो यह न केवल शारीरिक रोगों को दूर करता है, बल्कि व्यक्ति में चुम्बकीय आकर्षण भी उत्पन्न करता है। मातंगी कवच का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में गहरी शांति और आत्मविश्वास लाता है। इसके पाठ से व्यक्ति अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है और उसकी विद्या, ज्ञान व कला में निरंतर वृद्धि होती है। इस कवच को धारण करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, समृद्धि और मानसिक संतुलन आता है। साथ ही यह कवच व्यक्ति की आत्मा को ऊँचा उठाने का कार्य भी करता है, जिससे उसका जीवन खुशहाल और सुखमय बनता है।
श्री देव्युवाच
साधु-साधु महादेव। कथयस्व सुरेश्वर।
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ॥
श्री देवी ने कहा - हे महादेव! हे सुरेश्वर! मनुष्यों को सर्व-सिद्धि देने वाला दिव्य मातंगी कवच अत्यंत उत्तम है, वह कवच मुझसे कहिए।
श्री ईश्वर उवाच
श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं।
गोपनीयं महा-देवि। मौनी जापं समाचरेत् ॥
ईश्वर ने कहा - हे देवी! मैं उत्तम मातंगी कवच तुम्हें बताता हूँ, सुनो। हे महादेवी! इस कवच को गुप्त रखना और मौन रहकर जाप करना।
विनियोग
ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः। विराट् छन्दः।
श्रीमातंगी देवता। चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास
श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि।
विराट् छन्दसे नमः मुखे।
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि।
मूल कवच-स्तोत्र
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ॥
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ॥
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ॥
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी।
ब्रह्म-रन्प्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ॥
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ॥
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ॥
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः।
स-विसर्ग महा-देवि। हृदयं पातु सर्वदा ॥
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ॥
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ॥
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे।
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ॥
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे।
ऊर्ध्वं पातु महा-देवि। देवानां हित-कारिणी ॥
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं॥
मातंगिनी डे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः।
सार्द्धकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ॥
इति ते कथितं देवि। गुह्यात् गुह्य-तरं परमं।
त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम्॥
यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं।
परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः॥
गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाकृ-सिद्धि लभते ध्रुवम्॥
नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत्।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः॥
ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः।
तं दृष्ट्ा साधकं देवि। लज्जा-युक्ता भवन्ति ते॥
कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं।
राजानोऽपि च दासत्वं, षट-कर्माणि च साधयेत॥
सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः।
इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः॥
झल्पायुर्निधनो मूर्वो, भवत्येव न संशयः।
गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः॥
मातंगी कवच का नियमित पाठ करने से देवी मातंगी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
यह कवच व्यक्ति को विद्या, ज्ञान और कला में सफलता प्रदान करता है, जिससे वह विभिन्न क्षेत्रों में निपुणता प्राप्त करता है।
मातंगी कवच वाणी को प्रभावशाली और मधुर बनाता है, जिससे व्यक्ति अपने शब्दों से दूसरों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
यह कवच साधक को सांसारिक सुखों और विशेष कार्यों में सिद्धि प्रदान करता है, जिससे उसे जीवन में खुशहाली मिलती है।
मातंगी देवी की पूजा से व्यक्ति को गृहस्थ सुख, शत्रुओं का नाश और जीवन में शांति प्राप्त होती है।इस कवच के पाठ से व्यक्ति को भोग-विलास, संपत्ति और समृद्धि मिलती है, जिससे जीवन बेहतर होता है।
मातंगी कवच व्यक्ति को वाक सिद्धि प्रदान करता है, जिससे वह प्रभावी वक्ता और संवादकर्ता बनता है।
यह कवच कुंडली जागरण में भी सहायक होता है, जिससे जीवन में आने वाली समस्याएं हल होती हैं।
मातंगी कवच का पाठ करने से व्यक्ति को संगीत में कुशलता प्राप्त होती है और वह भविष्य में अच्छा संगीतकार बन सकता है।
यदि किसी बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है और वह फोकस नहीं कर पा रहा है, तो मातंगी कवच का पाठ करना चाहिए।
इस कवच का पाठ करने से बच्चे की एकाग्रता और ज्ञान में वृद्धि होती है, जिससे पढ़ाई में मन लगता है और वह सफल होता है।
इस कवच का पाठ करने से जीवन में सफलता के नए रास्ते खुलते हैं, जिससे व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्यों को हासिल कर सकता है।
मातंगी कवच का पाठ एक विशेष विधि से किया जाता है, जिसे श्रद्धा और विश्वास के साथ पालन करना आवश्यक है। सबसे पहले, एक स्वच्छ स्थान पर आसन बिछाकर बैठ जाएं और ध्यान केंद्रित करें। पूजा के लिए एक शांत स्थान चुनें, जहां कोई विघ्न या अशुद्धि न हो। फिर, पूजा स्थल पर दीपक और अगरबत्ती लगाकर मातंगी देवी की प्रतिमा या चित्र रखें। देवी को शुद्ध जल, पुष्प और अगरबत्ती अर्पित करें। अब, मंत्र जाप करें: ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा और ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा। इन मंत्रों का 108 बार जाप करें और प्रत्येक जाप के साथ गहरी श्रद्धा और समर्पण के साथ देवी मातंगी के रूप की कल्पना करें। मंत्र जाप के बाद कुछ समय मौन साधना करें और देवी मातंगी की कृपा प्राप्त करने के लिए मन ही मन प्रार्थना करें। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से माता मातंगी की पूजा और मंत्र साधना करता है, माता उस पर प्रसन्न होती हैं और उसे सभी प्रकार के दुखों, दरिद्रता, और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
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