अखंड साम्राज्य योग व्यक्ति को सत्ता, प्रभाव और आर्थिक समृद्धि दिलाने वाला योग है। इसे ज्योतिष शास्त्र में बहुत महत्व दिया जाता है।
अखंड साम्राज्य योग कुंडली में अद्भुत राजयोग माना जाता है, जो व्यक्ति को समृद्धि, प्रसिद्धि, और स्थायी सफलता प्रदान करता है। यह योग तब बनता है जब गुरु और चंद्रमा एक ही स्थान पर हों या परस्पर दृष्टि संबंध में हों। इस योग से व्यक्ति को उच्च पद, नेतृत्व क्षमता, और संपन्न जीवन मिलता है। सही समय पर प्रयास और परिश्रम से इस योग का पूर्ण लाभ उठाया जा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में एक मनुष्य की कुंडली में कई सारे योग बनते हैं जो कई बार शुभ और अशुभ फल देते है। शुभ योग एक व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता दिलाने में मदद करते है और जो अशुभ योग होते हैं उनके बनने से मनुष्य के जीवन में बड़ी परेशानियाँ खड़ी हो जाती है।
जब बात शुभ योगों की आती है तो उनमें अखंड साम्राज्य योग का नाम जरूर आता है। यह योगग तब बनता है जब किसी व्यक्ति की कुंडली में पंच महापुरुष योग में से कोई एक योग बन रहा हो और केंद्र (1, 4, 7, 10) या त्रिकोण (1, 5, 9) भाव में शुभ ग्रह गुरु, चंद्र, शुक्र, बुध स्थित हों, तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव उस योग पर न हो। जब यह योग बनता है तब व्यक्ति को काफी लंबे समय तक सफलता, सम्मान, धन, समृद्धि और जीवन में स्थिरता मिलती है। इस योग के प्रभाव से ही एक आम व्यक्ति भी राजा के जैसा जीवन जीने लगता है, वह जो भी काम करता है उसमें उसे अपार सफलता मिलती है।
जिन जातकों की कुंडली में अखंड साम्राज्य योग बनता है उनका भाग्य अत्यधिक प्रबल और बलवान हो जाता है। चाहे उनका जन्म कैसे भी परिवार में हुआ हो, चाहे जन्म के समय उन्होंने गरीबी देखी हो लेकिन जब उनके जीवन में इस योग का प्रभाव दिखना शुरू होता है तब वह व्यक्ति अपने जीवन में दिन दुगनी और रात चौगुनी सफलता देखता है। जिनकी कुंडली में यह योग होता है वो 75 वर्ष तक प्रभाव में रहता है। इस योग की सबसे खास बात यह है कि यह सभी बुरे योगों को पूरी तरह से समाप्त भी कर डेटा है। मतलब ऐसे व्यक्ति के जीवन में दुख और समस्याओं का आना एकदम बंद हो जाता है।
एक व्यक्ति की कुंडली में अखंड साम्राज्य योग तब बनता है जब पंच महापुरुष योग के साथ कुंडली में शुभ ग्रहों का बड़ा प्रभाव हो और अशुभ ग्रहों का प्रभाव बिल्कुल भी न हो। यह योग व्यक्ति को लंबे समय की सफलता, जीवन में स्थिरता, और राजा जैसा सुख प्रदान करता है। इसका प्रभाव तभी पूर्ण रूप से मिलता है जब योग से संबंधित ग्रहों की दशा और गोचर भी अनुकूल हों।
यदि मंगल लग्न कुंडली में केंद्र में हो और अपनी उच्च राशि यानि मकर में हो, साथ ही शुभ ग्रह जैसे चंद्र या गुरु त्रिकोण में हों, तो यह अखंड साम्राज्य योग बना सकता है।
जब शुक्र अपनी उच्च राशि यानि मीन या अपनी स्वयं की राशि वृषभ या तुला में केंद्र भाव में हो और उस पर कोई अशुभ ग्रह प्रभाव न डाल रहा हो।
गुरु जब केंद्र में हो और अपनी उच्च राशि जैसे कर्क या स्वयं की राशि धनु या मीन में स्थित हो तब हंस योग बनता है जो व्यक्ति को शुभ फल देता है।
जब कुंडली में पंच महापुरुष योग में से कोई एक, जैसे रुचक, भद्र, हंस, मालव्य योग बनता है, तो यह अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है। पंच महापुरुष योग तब बनता है, जब मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, या शनि ग्रह अपनी उच्च राशि, स्वग्रही स्थिति, या केंद्र (1, 4, 7, 10) भाव में स्थित हों।
कुंडली के केंद्र (1, 4, 7, 10) या त्रिकोण (1, 5, 9) भावों में शुभ ग्रहों (गुरु, चंद्र, शुक्र, बुध) की उपस्थिति अनिवार्य है। इन ग्रहों का बलवान और शुभ प्रभाव में होना आवश्यक है, ताकि योग प्रभावशाली बने।
योग पर राहु, केतु, शनि, या मंगल जैसे अशुभ ग्रहों की दृष्टि या उनकी नकारात्मक उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। ग्रह वक्री या अस्त स्थिति में भी नहीं होने चाहिए, क्योंकि इससे योग कमजोर हो सकता है।
कुंडली का लग्न और लग्नेश यानि प्रथम भाव का स्वामी मजबूत और शुभ प्रभाव में होना चाहिए। भावों का स्वामी शुभ ग्रहों के साथ संबंध में हो, ताकि कुंडली का समग्र योग शुभ फल प्रदान कर सके। साथ ही जिस जातक की जन्म कुंडली में अखंड साम्राज्य योग नवें घर में बनता है वह व्यक्ति अपने जीवन में एक समय पर आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करता है। वहीं जिसकी कुंडली में दूसरे घर यह योग बनता है ऐसे व्यक्ति शेयर बाजार में अच्छा निवेश करते हैं और लाभ भी कमाते हैं।
Did you like this article?
दशा क्या है? जानें हमारे जीवन में इसका महत्व, दशा के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव, और कैसे यह हमारे जीवन की दिशा बदल सकती है।
महादशा क्या है, इसका महत्व और हमारी जिंदगी पर इसके प्रभाव। जानें कि महादशा कैसे निर्धारित की जाती है और ज्योतिष में इसकी भूमिका।
सूर्य की महादशा: जानिए यह कैसे शुरू होती है, इसके लक्षण और हमारी जिंदगी पर पड़ने वाले प्रभाव। ज्योतिष में सूर्य की महादशा का महत्व समझें।