शिव के सिर पर क्यों विराजमान है चंद्रमा
दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्र के साथ किया था। चंद्र इनमें से सिर्फ रोहिणी को ही अधिक प्रेम करते थे और रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं। लेकिन अन्य कन्याओं ने अपने पिता से चंद्र की शिकायत की और दक्ष से अपना दु:ख प्रकट किया।
दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और दक्ष ने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे। इसके बाद चंद्र का शरीर धीरे धीरे क्षय रोग से ग्रसित होने लगा और उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गईं। तब नारदजी ने उन्हें शिव की आराधना करने के लिए कहा। तत्पश्चात उन्होंने भगवान शिव की आराधना करना शुरू की। जब चंद्र की अंतिम सांसें चल रही थी तब प्रदोष काल में शिव ने चंद्र को अपने सिर पर धारण करके उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया और क्षय रोग से उनकी रक्षा की।
भगवान शिव ने चंद्र देव से कहा की यह श्राप वापस तो नहीं लिया जा सकता परन्तु बिना चंद्र के पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जायेगा क्यूंकि बिना चंद्र की रौशनी के रात्रि का कोई अर्थ नहीं रहेगा। चंद्र को वरदान देते हुए भगवान शिव ने चंद्र से यह कहा कि कृष्ण पक्ष पर आपका आकार घटेगा और शुक्ल पक्ष पर आपका आकार बढ़ेगा। जिससे किसी को भी आपके अभिशाप और वरदान से दिक्कत नहीं होगी।
फिर पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए। चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्यु के दोषों को भोग रहे थे। भगवान ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया। तभी से चंद्रमा शिव के सिर पर विराजमान हैं।