इन चीजों के बिना अधूरी है महाशिवरात्रि की पूजा।
महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव को कुछ विशेष चीजें अर्पित की जाती है। सिर्फ इतना ही नहीं! इन विशेष चीजों के बिना भगवान शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है। ये पांच विशेष चीजें हैं
बिल्वपत्र शिवपूजा का अभिन्न अंग होता है। सनातन धर्म में बिल्वपत्र को साक्षात शिव शंकर का रूप माना जाता है। कहा जाता है कि बिल्व के वृक्ष के मूल यानि जड़ में शिवजी वास करते हैं। इसमें एक साथ जुड़े हुए तीन पत्ते त्रिदेव का स्वरूप होते हैं। महा शिवरात्रि से जुड़ी एक पौराणिक कथा बताती है कि प्राचीन काल में एक पतित शिकारी ने महा शिवरात्रि के दिन अनजाने में ही शिवलिंग को बिल्वपत्र अर्पित किया था। उसके इस पुण्य कर्म से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और उसे जीवन भर के पापकर्मों से मुक्ति प्रदान की थी।
धतूरा और आंक आयुर्वेदिक पौधा होते हैं। इनमें लगने वाले कांटेदार फल और सफ़ेद फूल भगवान शिव को बहुत प्रिय होते हैं। हमारे पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जब सम्पूर्ण विश्व को हलाहल की विषैली ज्वाला से बचाने के लिए शिवजी ने उस विष का पान किया तो उसकी ज्वाला से शिवजी का ताप और उनके कंठ में पीड़ा बढ़ने लगी। ऐसे में सभी देवताओं ने माता आदिशक्ति के निर्देशानुसार शिव जी को धतूरे का अर्क और आंक के फूल-पत्र आदि अर्पित करते हुए उनका दूध, गंगाजल आदि से अभिषेक किया। जिससे उनका ताप और पीड़ा कम हुई। तब से भगवान शिव जी को पूजा में आंक का फूल और धतूरा चढ़ाया जाता है।
इसका एक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण यह कहता है कि भगवान भोलेनाथ सांसारिक आडंबरों से परे रहकर सभी को अपना मानते हैं। धतूरा और आंक ऐसे पौधे हैं जिन्हें विषैला माना जाता है। परन्तु शिव उन्हें भी पूरी श्रद्धा के साथ स्वीकार करते हैं। ठीक उसी तरह, जैसे कि वे हम प्राणियों के सभी विकार, दोष और त्रुटियों के साथ अपने परम भक्त के रूप में स्वीकार करते हैं। इस तरह धतूरा और आंक तिरस्कृत होते हुए भी शिव को प्रिय है।
आमतौर पर भांग का सेवन नशीले पदार्थ की तरह किया जाता है, और इसके सेवन को भगवान शिव से जोड़कर कई लोग इसके व्यसन को महिमामंडित भी करते हैं। लेकिन शिव के सच्चे भक्त जानते हैं कि शिव को साधना के लिए किसी व्यसन की जरूरत नहीं है। हमारे शास्त्रों में भांग के शिव से सम्बन्ध का जितना भी वर्णन मिलता है, उससे यह पता चलता है कि भगवान नीलकंठ को हलाहल की ज्वाला से मुक्ति दिलाने के लिए भांग के पत्तों को पीसकर बनाया गया लेप लगाया गया था। इसीलिए भांग को शिवपूजा में विशेष रूप से सम्मिलित किया जाता है। परन्तु इस आयुर्वेदिक पौधे को नशे का साधन बनाकर इसका अत्यधिक सेवन करने से बचें, मात्र प्रसाद के तौर पर इसे स्वीकार करें।
महा शिवरात्रि फाल्गुन मास में मनाई जाती है। इस समय देशभर में बेर के फल और गन्ने की फसल आने का समय होता है। बेर का फल कांटे के बीच में फलता है, और आसानी से किसी भी उर्वर क्षेत्र में उग सकता है। इसलिए महा शिवरात्रि की पूजा में बेर को एक फल के रूप में शिव जी को अर्पित किया जाता है। इस तरह यह भगवान शिव को नई फसल आने और मौसम में होने वाले अच्छे परिवर्तन के लिए आभार व्यक्त करने के प्रतीक माना जाता है।
इसके साथ ही महा शिवरात्रि का शुभ दिन भगवान शिव की कृपा पाने के लिए भी विशेष है। इस दिन महादेव को सच्चे मन से चढ़ावा अर्पित करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, श्री मंदिर के माध्यम से हम आपके लिए चढ़ावा सेवा लेकर आए हैं, जिससे आप घर बैठे अपने और अपने परिवार के नाम से बनारस के विश्व विख्यात काशी विश्वनाथ मंदिर में चढ़ावा (गंगाजल, दूध, फूलों की टोकरी, बिल्व पत्र) अर्पित कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए श्री मंदिर के अन्य लेख एवं वीडियो अवश्य देखें।
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