जानें इसे पढ़ने और जाप करने के अद्भुत लाभ। पितृ तर्पण और पूजा के माध्यम से मानसिक शांति, परिवार में समृद्धि और आशीर्वाद पाने का सरल उपाय।
पितरों को खुश करने के लिए मंत्र का जाप श्राद्ध, अमावस्या या पितृपक्ष के समय विशेष रूप से किया जाता है। यह मंत्र हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति, मोक्ष और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि, संतुलन और पारिवारिक सद्भाव बढ़ता है। इस लेख में जानिए पितरों को प्रसन्न करने वाले मंत्र का महत्व, उसका अर्थ और इसके जाप की विधि।
पितृ तर्पण का अर्थ है – पितरों को जल और तिल अर्पित कर तृप्त करना। ‘तर्पण’ शब्द ‘तृप्त’ से बना है, जिसका भाव है – आत्मीय भाव से जल अर्पण कर पितरों को संतुष्ट करना। यह श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) के दौरान विशेष रूप से किया जाता है, लेकिन मासिक तिथि (अमावस्या) पर भी किया जा सकता है।
भारतीय सनातन संस्कृति में पितृ तर्पण और पितृ पूजन को अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्यों में गिना जाता है। यह कर्म हमारे पूर्वजों (पितरों) की आत्मा की शांति, मुक्ति और आशीर्वाद के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जो संतान अपने पितरों का तर्पण व पूजन श्रद्धा से करती है, उसे उनके आशीर्वाद से सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
पितृ पूजन विधी
पितृ पूजन में पूर्वजों की तस्वीर या प्रतीक रूप में कुश, तिल, जल, पुष्प आदि के माध्यम से उनका आवाहन कर, मंत्रों के साथ उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। यह पूजन घर में भी किया जा सकता है और ब्राह्मण भोज, गाय को भोजन, गरीबों को दान के साथ पूर्ण होता है।
भारतीय सनातन धर्म में पितरों (पूर्वजों) को देवताओं के समान मान्यता दी गई है। कहा जाता है कि ‘पितृ प्रसन्न, तो देवता प्रसन्न।’ पितरों को खुश करना केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक आत्मिक और पारिवारिक उत्तरदायित्व भी है। आइए जानते हैं पितरों को खुश क्यों करना चाहिए।
पितृ ऋण से मुक्ति के लिए
मनुष्य तीन प्रकार के ऋण लेकर जन्म लेता है- देव ऋण (ईश्वर के प्रति), ऋषि ऋण (गुरु व ज्ञान के प्रति), पितृ ऋण (पूर्वजों के प्रति)। पितरों को खुश कर के हम पितृ ऋण चुका सकते हैं, जो जीवन का अनिवार्य धर्म है।
जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के लिए
जब पितर प्रसन्न होते हैं, तो वे अपनी संतान को आशीर्वाद देते हैं, जिससे- घर में शांति बनी रहती है, विवाह, संतान और करियर में सफलता मिलती है, बाधाएं स्वतः दूर होने लगती हैं।
पितृ दोष से बचाव के लिए
अगर पितृ तर्पण, पूजन या श्रद्धा से जुड़ा कोई कर्तव्य अधूरा रह जाता है, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है। इसके कारण परिवार में संतानहीनता, विवाह में देरी, आर्थिक तंगी, मानसिक तनाव जैसी समस्याएं आ सकती हैं।
कर्म और कुल की शुद्धि के लिए
पितर यदि कहीं असंतुष्ट या असमर्थ आत्मा रूप में भटक रहे हों, तो उनका तर्पण कर उन्हें शांति देना, पूरे कुल के लिए पुण्य का कार्य होता है। इससे वंश की उन्नति होती है।
पीढ़ियों के संबंध को मजबूत करने के लिए
पितृ पूजन, श्राद्ध और तर्पण केवल एक रस्म नहीं, बल्कि नई पीढ़ी को उनके मूल, संस्कार और पारिवारिक परंपराओं से जोड़ने का माध्यम भी है। गरुड़ पुराण में कहा गया है- पितरः प्रीयन्ति येन श्राद्धेन विधिपूर्वकम्। ते तु तृप्ताः प्रयच्छन्ति पुत्रपौत्रादिकं शुभम्॥ जिसका अर्थ है जो श्राद्ध आदि विधिपूर्वक करता है, उससे पितर प्रसन्न होते हैं और उसे संतान, समृद्धि और शुभ फल प्रदान करते हैं।
पितरों को प्रसन्न करने के लिए ‘ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः’ मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र तर्पण, श्राद्ध, और पितृ पूजन के समय बोला जाता है। ‘स्वधा’ शब्द पितरों को समर्पण का सूचक है, जैसे ‘स्वाहा’ देवताओं के लिए होता है। इसके अलावा, ‘ॐ पितृ गणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्’ मंत्र का भी जाप कर सकते हैं।
पितरों के लिए मंत्र जाप करने की विधि एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें श्रद्धा, नियम और शुद्धता का पालन करना आवश्यक होता है। यह जाप पितरों की आत्मा की शांति, मोक्ष और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
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