जानें इसे पढ़ने और जाप करने के अद्भुत लाभ। तुलसी पौधे की देखभाल और पूजा से घर में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा पाने का सरल उपाय।
हिंदू धर्म में अनेक पौधों और वृक्षों को पवित्र मानकर पूजा जाता है, लेकिन इनमें तुलसी का स्थान अद्वितीय है। इसे केवल एक पौधा नहीं, बल्कि साक्षात देवी का रूप, ‘तुलसी माता’ के नाम से पूजा जाता है। हर घर के आँगन या बालकनी में तुलसी का पौधा मिलना एक सामान्य दृश्य है, और इसकी सुबह-शाम पूजा करना भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह मान्यता है कि जिस घर में तुलसी का वास होता है, वहाँ सुख-समृद्धि और सकारात्मकता का वास होता है।
तुलसी को ‘माता’ का दर्जा कई पौराणिक कथाओं, धार्मिक मान्यताओं और औषधीय गुणों के कारण प्राप्त है:
पौराणिक मान्यता: तुलसी को भगवान विष्णु की प्रियतमा माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी पूर्व जन्म में वृंदा नाम की एक सती स्त्री थीं। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें तुलसी के रूप में स्वीकार किया और वरदान दिया कि वे हमेशा उनकी प्रिय रहेंगी। इसी कारण, तुलसी को ‘विष्णुप्रिया’ भी कहा जाता है और भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी दल (पत्ते) का होना अनिवार्य माना जाता है। शालिग्राम शिला और तुलसी का विवाह ‘तुलसी विवाह’ के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।
देवी लक्ष्मी का स्वरूप: कुछ मान्यताओं में तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार भी कहा गया है। इसलिए, जहाँ तुलसी की पूजा होती है, वहाँ लक्ष्मी का स्थायी वास माना जाता है।
औषधीय गुण: आयुर्वेद में तुलसी को ‘संजीवनी बूटी’ कहा गया है। इसमें रोगनाशक गुण जैसे, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और तनाव नाशक तत्व होते हैं। यह शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने में सहायक है।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश: तुलसी के पौधे को घर की बुरी शक्तियों, वास्तु दोषों और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने वाला माना जाता है। इसकी सुगंध वातावरण को शुद्ध और शांत करती है।
इन सभी कारणों से, तुलसी को केवल एक पौधा नहीं, बल्कि एक जीवित देवी, एक पालनकर्ता और एक रक्षक के रूप में ‘माता’ का स्थान प्राप्त है।
तुलसी को जल चढ़ाना केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है:
**"महाप्रसाद जननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी।** **आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते॥"** **“ॐ सुभद्राय नमः”**
अर्थ: “हे तुलसी माता, आप महान प्रसाद को जन्म देने वाली हैं, सभी प्रकार के सौभाग्य को बढ़ाने वाली हैं। आप हमेशा शारीरिक और मानसिक रोगों को हरने वाली हैं। हे तुलसी, मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ।”
यह मंत्र तुलसी के गुणों और उनसे प्राप्त होने वाले लाभों का सुंदर वर्णन करता है, और इसे जाप करते हुए जल अर्पित करने से आपकी भक्ति और प्रार्थना सीधे तुलसी माता तक पहुँचती है।
शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से पहले): सबसे शुभ समय। सुबह: सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक जल देना उत्तम माना जाता है।
शुभ दिन
तुलसी को रविवार के दिन छोड़कर बाकी सभी दिन जल दिया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि रविवार को तुलसी माता भगवान विष्णु के लिए व्रत रखती हैं। एकादशी के दिन भी तुलसी को जल नहीं देना चाहिए। सूर्यास्त के बाद भी तुलसी को स्पर्श करना या जल देना वर्जित माना जाता है।
तुलसी में जल देने की विधि अत्यंत सरल है, लेकिन इसे भक्तिभाव और नियमों के साथ करना चाहिए:
तुलसी मात्र एक पौधा नहीं, बल्कि यह धार्मिक आस्था, शारीरिक स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा का जीवंत प्रतीक है। इसकी पूजा भारतीय संस्कृति में प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और आध्यात्मिक संबंध की गहरी समझ को दर्शाती है।रोज़ाना तुलसी को जल अर्पित करने से न केवल वातावरण शुद्ध होता है, बल्कि मानसिक शांति, समृद्धि और ईश्वरीय कृपा भी प्राप्त होती है।
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