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महानंदा नदी

हिमालय की तराई से निकलकर गंगा में मिलने तक महानंदा नदी एक शांत लेकिन महत्वपूर्ण धारा है। इसकी पौराणिक कथाएँ और सांस्कृतिक जुड़ाव इसे उत्तर भारत की छिपी हुई धरोहर बनाते हैं।

महानंदा नदी के बारे में

महानंदा नदी भारत की एक महत्वपूर्ण और पवित्र नदी है, जो गंगा नदी की सहायक नदी है। इसका उद्गम दार्जिलिंग जिले के पहाड़ी क्षेत्र (पश्चिम बंगाल) में होता है और यह नदी बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। यह नदी सिंचाई, कृषि और दैनिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है। धार्मिक दृष्टि से भी इसका स्थानीय महत्व है, और इसके किनारे कई छोटे तीर्थ स्थल स्थित हैं।

महानंदा नदी

महानंदा नदी, जो उत्तर बिहार की प्रमुख नदियों में से एक है, का उद्गम पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में स्थित हिमालय पर्वत माला के करसियांग क्षेत्र से होता है। यह नदी 2062 मीटर की ऊँचाई से बहना शुरू करती है और लगभग 376 किलोमीटर की लंबी यात्रा करती हुई गंगा नदी में मिल जाती है। महानंदा नदी का जलग्रहण क्षेत्र काफी विस्तृत है, जिसमें नेपाल, पश्चिम बंगाल, बिहार, और बांग्लादेश शामिल हैं। इस नदी का पानी न केवल कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है।

महानंदा नदी के बारे में पौराणिक मान्यताएँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं। हिंदू धर्म में इसे एक पवित्र नदी के रूप में माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार, महानंदा नदी का उत्पत्ति भगवान शिव के आशीर्वाद से हुई थी। इसे देवताओं द्वारा आशीर्वादित नदी माना जाता है, जो पुण्य और सुख की प्राप्ति में सहायक मानी जाती है। महानंदा के जल में स्नान करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महानंदा नदी मार्ग

महानंदा नदी की यात्रा का मार्ग बहुत दिलचस्प और विस्तृत है। यह नदी सबसे पहले पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में करसियांग से उत्पन्न होती है और वहां से बहकर बिहार के कटिहार जिले की ओर बढ़ती है। इसके बाद यह नदी पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में प्रवेश करती है और वहां से बांग्लादेश में दाखिल हो जाती है, जहां वह गंगा नदी में मिल जाती है।

महानंदा नदी का मार्ग इस प्रकार है:

  • उद्गम: महानंदा नदी का स्रोत पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के करसियांग क्षेत्र में स्थित हिमालय पर्वत माला के चिमले गांव से है।
  • झौआ शाखा: बागडोब में नदी की धारा दो भागों में बंट जाती है। इनमें से झौआ शाखा का पानी अधिक प्रवाहित होता है और यह कटिहार-बिहार और पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों से गुजरता है।
  • बारसोई शाखा: बागडोब पर दूसरी शाखा जो दक्षिण-पूर्व की दिशा में बहती है, बारसोई के पास कटिहार-बारसोई रेल लाइन को पार करती है।
  • संगम: महानंदा की झौआ शाखा और बारसोई शाखा के बाद, नदी बांग्लादेश में गोदागिरी घाट के पास गंगा नदी में मिल जाती है।

महानंदा का जलग्रहण क्षेत्र 24,753 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें नेपाल, पश्चिम बंगाल, बिहार और बांग्लादेश के हिस्से आते हैं। इस नदी का प्रवाह अक्सर बदलता रहता है, और इसके कारण कुछ क्षेत्रों में जलभराव की समस्या भी उत्पन्न होती है।

महानंदा नदी का धार्मिक महत्व

महानंदा नदी का धार्मिक महत्व भारतीय संस्कृति में अत्यधिक गहरा है। इसे गंगा के समान पवित्र माना जाता है, और इसके तट पर कई प्रमुख धार्मिक स्थल और मंदिर स्थित हैं। यहां लाखों श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष स्नान करने आते हैं और पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। विशेषकर पूर्णिया, कटिहार, और मालदा क्षेत्रों में नदी के किनारे स्थित मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है।

महानंदा नदी के तट पर स्थित मंदिरों में प्रमुख रूप से लक्ष्मण मंदिर, गंधेश्वर मंदिर, और हुमा का झुका हुआ मंदिर जैसे धार्मिक स्थल शामिल हैं। यह मान्यता है कि महानंदा के पानी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।

किंवदंती के अनुसार, त्रेतायुग में श्रृंगी ऋषि का आश्रम सिहावा की पहाड़ी में स्थित था। ऋषि ने अयोध्या में महाराजा दशरथ के कहने पर पुत्रेष्ठि यज्ञ किया था और उसी यज्ञ में प्रयुक्त गंगा का पवित्र जल अपने कमंडल में भर लिया था। बाद में यह जल महानंदा नदी में प्रवाहित हुआ और इसे गंगा के समकक्ष पवित्र माना गया।

महानंदा नदी को "चित्रोत्पला-गंगा" के रूप में भी जाना जाता है, जैसा कि सोमेश्वरदेव के महुदा ताम्रपत्र में उल्लेखित है।

महानंदा नदी से जुड़े रोचक तथ्य

महानंदा नदी न केवल एक जल स्रोत है, बल्कि इसके साथ जुड़ी कई रोचक विशेषताएँ भी हैं:

  • नदी की धारा का विभाजन: बागडोब के पास, महानंदा नदी की धारा दो भागों में बंट जाती है, जिनमें से झौआ शाखा सबसे प्रमुख है। झौआ शाखा के पानी की अधिकता के कारण यह नदी विभिन्न स्थानों पर जल आपूर्ति और सिंचाई का मुख्य स्रोत बनती है।
  • धाराओं का परिवर्तन: महानंदा की सहायक नदियाँ, जैसे पनार, बकरा, कनकई, और मेची, लगातार अपने मार्ग बदलती रहती हैं। इन धाराओं का मार्ग बदलने और जल प्रवाह की मात्रा में बदलाव के कारण इन नदियों के नाम भी विभिन्न स्थानों पर बदलते रहते हैं।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: महानंदा नदी के निचले हिस्सों में जल प्रवाह की कमी के कारण कभी-कभी जल-जमाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी, जिसके कारण कटिहार और पूर्णिया जैसे क्षेत्रों में बाढ़ आती थी
  • ऐतिहासिक सर्वेक्षण: ब्रिटिश शासन के दौरान, जेम्स रेनेल ने 1779 में महानंदा नदी का पहला सर्वेक्षण किया था। इसके बाद डॉ० फ्रान्सिस बुकानन हैमिल्टन, रॉबर्ट मॉन्टगुमरी मार्टिन, और डॉ० डब्लू. डब्लू. हन्टर ने भी इस नदी के प्रवाह पथ का विवरण दिया था।
  • धार्मिक सीमा: महानंदा नदी को एक धार्मिक सीमा के रूप में भी देखा जाता है, जो हिंदी और बांग्ला भाषी क्षेत्रों के बीच की सीमा रेखा बनाती है।
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Published by Sri Mandir·April 16, 2025

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