सिक्किम की घाटियों से बहती तीस्ता सिर्फ एक प्राकृतिक धारा नहीं, बल्कि सौंदर्य और आस्था का संगम है। जानिए इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएँ और ऐतिहासिक बातें।
भारत में हर नदी का अपना महत्व है । हम गंगा, यमुना और नर्मदा जैसी नदियों के बारे में तो बहुत कुछ जानते हैं लेकिन उत्तर पूर्वी राज्य सिक्किम की महत्वपूर्ण नदी के बारे में हमारी जानकारी नाकाफी है। आइए इस लेख में जानते हैं तीस्ता के बारे में सभी ज़रूरी जानकारियां
तीस्ता नदी भारत के सिक्किम राज्य के उत्तरी भाग में स्थित चोलामू झील से निकलती है, जो समुद्र तल से 5,330 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह झील हिमालय की बर्फीली चोटियों के पिघलने से बनी है। तीस्ता नदी का मार्ग पहले ब्रह्मपुत्र नदी की ओर था, लेकिन भौगोलिक बदलावों के कारण इसका प्रवाह अब गंगा की सहायक नदी के रूप में हो गया है।
इस नदी का इतिहास प्राचीनकाल से जुड़ा हुआ है। इसे त्रिस्रोत नदी भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है तीन स्रोतों से मिलने वाली नदी। इस नदी के तट पर अनेक साम्राज्यों ने अपनी संस्कृति को विकसित किया। ब्रिटिश शासन के दौरान यह नदी उत्तर बंगाल और सिक्किम की व्यापारिक धारा के रूप में महत्वपूर्ण थी। इस नदी के किनारे स्थित क्षेत्रों में कई पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।
तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश के बीच एक प्रमुख नदी है। यह सिक्किम से निकलकर पश्चिम बंगाल होते हुए बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 414 किलोमीटर है।
इसका जलमार्ग उत्तर सिक्किम से शुरू होकर दक्षिण सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों से होकर गुजरता है। यह नदी भारत और बांग्लादेश के बीच एक प्राकृतिक सीमा का भी निर्माण करती है। नदी का पानी बहुत ठंडा और स्वच्छ होता है, जिससे यह पर्यटन के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
कालिकापुराण सहित कई वेदों और पुराणों में तीस्ता नदी का उल्लेख मिलता है। इस पौराणिक कथा का संबंध भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़ा हुआ है।
मान्यता है कि एक समय असुरों ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव से अपार शक्ति का वरदान प्राप्त किया। हालांकि, वे शिव के भक्त तो थे, लेकिन देवी पार्वती और अन्य स्त्रियों को तुच्छ समझते थे। उनकी मानसिकता स्त्रियों के प्रति नकारात्मक थी, और वे अपने राज्य में महिलाओं का निरंतर अपमान करते थे। जब इस अन्याय से त्रस्त होकर स्त्रियों ने देवी आदिशक्ति का आह्वान किया, तो देवी ने असुरों को चेताया। असुरों ने चेतावनी को अनदेखा करते हुए माता पार्वती का भी अनादर किया, जिससे उनके और देवी के बीच घोर युद्ध छिड़ गया। युद्ध के दौरान जब असुर बुरी तरह घायल हो गए और मृत्यु के निकट पहुंचे, तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने देवी पार्वती को 'माता' कहकर पुकारा और प्रार्थना की कि वे अत्यंत थक चुके हैं और उन्हें अत्यधिक प्यास लगी है।
असुरों की करुण पुकार सुनकर देवी पार्वती के हृदय से तीन निर्मल जलधाराएं प्रवाहित हुईं। यही जलधाराएं तीस्ता नदी के रूप में प्रवाहित हुईं और आज भी संसार की प्यास बुझा रही हैं। इस प्रकार, तीस्ता केवल एक नदी नहीं, बल्कि माता पार्वती की करुणा और दिव्य शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
तीस्ता को "सिक्किम की जीवनरेखा" कहा जाता है क्योंकि यह राज्य की प्रमुख जलधारा है। इस नदी का पानी हरे-नीले रंग का होता है, जो इसे अन्य नदियों से अलग बनाता है।
यह नदी जलविद्युत उत्पादन के लिए बेहद उपयोगी है। भारत में कई जलविद्युत परियोजनाएँ इस नदी पर स्थापित हैं। तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश के बीच जल बंटवारे के विवाद का कारण बनी हुई है। मानसून के समय इस नदी का प्रवाह बहुत तेज़ हो जाता है, जिससे बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है।
इस नदी में पाए जाने वाले जीव-जंतु भी इसे विशेष बनाते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और जलीय वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, जो इसकी जैव विविधता को दर्शाती हैं।
भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर एक दीर्घकालिक विवाद है। बांग्लादेश को इस नदी के जल की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि यह उनकी कृषि और जलापूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संधि पर हस्ताक्षर करने का विरोध किया है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में भी इस नदी का जल आवश्यक है। भारत और बांग्लादेश के बीच इसे सुलझाने के लिए कई दौर की वार्ताएँ हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई अंतिम समझौता नहीं हो पाया है।
यह विवाद राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि इस समस्या का समाधान नहीं निकला, तो यह दोनों देशों के संबंधों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
तीस्ता नदी का सुंदर हरा-नीला जल पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। सिक्किम और दार्जिलिंग के पास इस नदी पर रिवर राफ्टिंग जैसी कई साहसिक गतिविधियाँ होती हैं। इसके किनारे कई प्राकृतिक पर्यटन स्थल स्थित हैं, जहाँ हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से, तीस्ता नदी पर बढ़ते बाँध और जलविद्युत परियोजनाओं से इसकी पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बढ़ती जनसंख्या और उद्योगों के कारण नदी का जल धीरे-धीरे प्रदूषित हो रहा है। नदी के किनारे के जंगलों की कटाई और शहरीकरण से इसके जल स्तर में कमी देखी जा रही है।
इस नदी की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सरकार और स्थानीय समुदायों को मिलकर प्रयास करने होंगे। यदि सही समय पर उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह नदी धीरे-धीरे अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता खो सकती है। तीस्ता नदी केवल एक भौगोलिक धारा नहीं, बल्कि सिक्किम और पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। यह नदी उत्तर बंगाल और सिक्किम के लोगों की आजीविका और जीवनशैली से गहराई से जुड़ी हुई है। इसकी सुरक्षा और संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है।
इस नदी के महत्व को देखते हुए, यह आवश्यक है कि इसके जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्रभावी नीतियाँ अपनाई जाएँ। साथ ही, जल बंटवारे के विवाद को हल करने के लिए दोनों देशों को आपसी समझ और सहयोग से काम करना होगा। यदि इस नदी को सुरक्षित रखा जाए, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संसाधन बनी रहेगी।
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