तुंगभद्रा सिर्फ एक नदी नहीं, भक्ति और शक्ति की प्रवाहिनी है। हंपी से लेकर हरिहर तक, इसके तटों पर बसते हैं इतिहास और आस्था के जीवंत प्रतीक। जानिए इससे जुड़ी अद्भुत मान्यताएँ।
तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की एक प्रमुख और पवित्र नदी है। यह कर्नाटक में तुंग और भद्रा नदियों के संगम से बनती है। यह नदी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से होते हुए कृष्णा नदी में मिलती है। तुंगभद्रा का धार्मिक, ऐतिहासिक और सिंचाई में विशेष महत्व है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
भारत में नदियाँ जीवन का मूल आधार हैं, जो धर्म, प्रकृति एवं संस्कृति को जोड़ती हैं। इन्हीं में से एक तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न अंग है। यह नदी कई राज्यों को जीवनदान देती है, तथा इसके तट पर स्थित हम्पी जैसे ऐतिहासिक नगरों और मंदिरों ने इसे धार्मिक महत्व प्रदान किया है। अपने गुणों के कारण इस नदी का जल श्रद्धालुओं के लिए भी अत्यंत पवित्र माना जाता है।
तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की एक प्रमुख और पवित्र नदी है, जो भारत के इतिहास, भूगोल और पुराणों से गहराई से जुड़ी हुई है। यह नदी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कई भागों में जीवनरेखा के रूप में बहती है। इस नदी का उद्गम दो नदियों, तुंगा और भद्रा के संगम से हुआ है, जो पश्चिमी घाट की पर्वतमालाओं से निकली हैं। तुंगा नदी शिवमोग्गा ज़िले से और भद्रा नदी भद्रावती के पास चिकमंगलूर ज़िले में गंगामूला के पश्चिमी घाट से निकलती है। ये दोनों नदियाँ कुदली संगम के पास मिलकर तुंगभद्रा नदी का निर्माण करती हैं।
पौराणिक दृष्टिकोण से, तुंगभद्रा को भगवान विष्णु और शिव दोनों से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि तुंगभद्रा नदी के तट पर ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी, जिससे इस नदी की पवित्रता कई गुना बढ़ गई। तुंगभद्रा के तट पर स्थित हम्पी शहर को धार्मिक दृष्टि से विशेष मान्यता प्राप्त है। यहां विरुपाक्ष मंदिर एवं अन्य प्राचीन मंदिरों में तुंगभद्रा के पावन जल से अभिषेक और पूजा की जाती है। इसका जल इन तीर्थ स्नानों के लिए बहुत पवित्र माना जाता है, और अनेक श्रद्धालु विशेष पर्वों व एकादशी के अवसर पर इसके जल में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं। कई महान संतों और तपस्वियों ने इसके तट पर ध्यान एवं साधना की, जिससे यह नदी भक्ति, तपस्या और मोक्ष की प्रतीक बन गई है।
इतिहास में, तुंगभद्रा नदी विजयनगर साम्राज्य की समृद्धि का आधार थी। इसके किनारे स्थित हम्पी शहर आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। तुंगभद्रा की जलधारा न केवल कृषि के लिए अमूल्य रही, बल्कि इसके किनारे धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधियाँ भी पनपीं।
इस प्रकार, तुंगभद्रा नदी इतिहास और पौराणिकता का संगम है, जो आज भी भक्ति, परंपरा एवं जीवन का प्रतीक बनी हुई है।
तुंगभद्रा नदी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों से होकर बहती है। यह कृष्णा नदी की मुख्य सहायक नदी है , जिसका उद्गम कुदली नामक स्थान से होता है। तुंगा और भद्रा का संगम होने के बाद यह नदी तुंगभद्रा के नाम से आगे बहती है।
तुंगभद्रा नदी पूर्व की ओर बहते हुए कर्नाटक के कई ज़िलों से होकर गुजरती है, जिनमें शिवमोग्गा, दावणगेरे, हावेरी, बल्लारी और कोप्पल प्रमुख हैं। आगे यह नदी ऐतिहासिक शहर हम्पी के पास से बहती है, जो कभी शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। यहां से यह आंध्र प्रदेश में प्रवेश करती है और अनंतपुर, कडप्पा और कुरनूल ज़िलों से होकर बहती है।
तुंगभद्रा अंततः आंध्र प्रदेश के कुरनूल ज़िले में गुंटकल के पास पंचमुखी क्षेत्र से गुजरती हुई कुर्नूल के संगम स्थान पर कृष्णा नदी में मिल जाती है।
इस मार्ग पर कई महत्वपूर्ण सिंचाई और बांध परियोजनाएँ हैं, जैसे होस्पेट के पास तुंगभद्रा डैम, जो कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में कृषि, बिजली उत्पादन और जल आपूर्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हमारे धार्मिक ग्रंथों में तुंगभद्रा नदी का वर्णन मिलता है। रामायण में इसे पम्पा के नाम से पुकारा गया है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर असुर हिरण्याक्ष का वध किया, और पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। युद्ध ख़त्म होने के बाद वे एक पर्वत पर विश्राम करने बैठे, जिसे आज वराह पर्वत के नाम से जाना जाता है। यहां विश्राम करते समय उनके शरीर से पसीना बहने लगा, जिसमे बाएं भाग की पसीने धारा से तुंगा नदी की उत्पत्ति हुई और दाहिने भाग की पसीने की धारा भद्रा नदी कहलाई।
एक और कथा के अनुसार तुंगा और भद्रा नामक स्वर्ग की दो अप्सराएं थी, जिन्होंने भगवान ब्रह्मा से वरदान माँगा था कि वे धरती पर पवित्र नदियों के रूप में वास करें। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि वे धरती पर अवतरित होकर मानवता के कल्याण के लिए बहेंगी। वर्तमान में जिन राज्यों में तुंगभद्रा बहती है, उनके लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है।
आधुनिक समय में तुंगभद्रा नदी प्रदूषण और जलविभाजन की राजनीति का शिकार हो रही है, जिससे इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। परन्तु तुंगभद्रा सिर्फ एक नदी से कहीं अधिक एक जीवंत सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहर हैं। ऐसी ही अन्य पवित्र नदियों की जानकारी के लिए श्री मंदिर के साथ बने रहे।
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