माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा | Maa Brahmacharini Ki Puja
माँ दुर्गा के दूसरे शक्ति स्वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है, और शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन देवी जी के इसी स्वरूप को समर्पित होता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन अर्थात 04 अक्टूबर, शुक्रवार को माँ ब्रह्मचारिणी की साधना की जाएगी।
तो चलिए सबसे पहले बात करते हैं कि द्वितीया तिथि का प्रारंभ और समापन कब होगा-
04 अक्टूबर, दूसरा दिन- द्वितीया तिथि, मां ब्रह्मचारिणी पूजा
द्वितीया तिथि प्रारंभ: 04 अक्टूबर, शुक्रवार 02:58 AM द्वितीया तिथि समापन 05 अक्टूबर, शनिवार, 05:30 AM
माँ ब्रह्मचारिणी को वैराग्य की देवी कहा जाता है। एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जपमाला धारण किये हुए माँ ब्रह्मचारिणी हम सभी साधकों को वैराग्य और तप का मार्ग दिखाती हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से होने वाले लाभ :
शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधकों को सभी तामसिक विचारों से मुक्ति मिलती है। इस दिन माता के इस स्वरूप की आराधना करने से मानव शरीर में कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है, जिससे उनका जीवन सफल होता है, और वे किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर पाते हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी को सफ़ेद रंग अतिप्रिय है, और इस बार शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए शुभ रंग लाल है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा कैसे करें –
- सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
- आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
- इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
- अब माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
- अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
- इसके बाद ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥ मन्त्र के द्वारा माँ ब्रह्मचारिणी का आह्वान करें।
- देवी जी के आह्वान के बाद, माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें और माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें-
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
- प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
- साथ ही, कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
- इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता को फूल-माला अर्पित करें।
- नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
- एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
- अब भोग के रूप में दूध से बनी मिठाई माता को अर्पित करें।
- इसके बाद माँ ब्रह्मचारिणी की आरती गाएं।
- आप श्रीमंदिर पर भी माँ ब्रह्मचारिणी के दर्शन कर सकते हैं, साथ ही माता की आरती भी सुन सकते हैं।
ब्रह्मचारिणी देवी की आरती
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥
ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा॥
जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाए। उसकी विरति रहे ठिकाने॥
जो तेरी महिमा को जाने। रद्रक्षा की माला ले कर॥
जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर। आलस छोड़ करे गुणगाना॥
माँ तुम उसको सुख पहुँचाना। ब्रह्मचारिणी तेरो नाम॥
पूर्ण करो सब मेरे काम। भक्त तेरे चरणों का पुजारी॥
रखना लाज मेरी महतारी।
अब माँ दुर्गा की आरती करें।
इस तरह आपकी पूजा का समापन करें सबको प्रसाद वितरित करके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।
तो यह थी दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि। शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा के साथ ही माता के नौ रूपों को उनके दिन के अनुसार पूजने से माता आपकी हर मनोकामना पूरी करती हैं, और पूरे वर्ष आपके हर कार्य की सिद्धि का आशीर्वाद देती हैं। श्रीमंदिर पर आपके लिए नवरात्र के नौ दिनों की पूजा विधि उपलब्ध है, इन्हें जानने के लिए जुड़े रहिये श्रीमंदिर से।
जय माता की!