क्या आप जानते हैं हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाने के लिए कौन सा पर्वत उठाया था? इस ऐतिहासिक घटना और इसके महत्व की पूरी जानकारी पढ़ें।
हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत (संजीवनी पर्वत) उठाया था। जब लक्ष्मण युद्ध में घायल हो गए, तो उनकी जीवन रक्षा के लिए संजीवनी बूटी की आवश्यकता थी। हनुमान जी हिमालय गए लेकिन सही जड़ी-बूटी पहचान न पाने के कारण पूरा पर्वत ही उठा लाए, जिससे लक्ष्मण का जीवन बच गया।
रामायण की कथा में कई अद्भुत घटनाएँ वर्णित हैं, जिनमें से एक हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाने के लिए पूरे पर्वत को उठा लेने की घटना सबसे प्रसिद्ध है। जब रावण और श्रीराम के बीच घोर युद्ध हो रहा था, तब रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण जी पर शक्तिशाली अस्त्र का प्रहार किया, जिससे वे मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। यह देखकर समस्त वानर सेना और भगवान श्रीराम अत्यंत व्याकुल हो गए।
इसके बाद की घटना ने युद्ध को को कुछ देर के लिए थाम दिया। हर बार की तरह इस बार भी रामदूत हनुमान जी ने ही वो लीला दिखाई जिसकी मिसाल आज भी दूसरी नहीं । आइए इस लेख में जानते हैं उस पर्वत के बारे में पूरा रहस्य, जिसे पवनपुत्र हनुमान उठाकर ले आए थे।
घायल लक्ष्मण जी की गंभीर स्थिति को देखकर, श्रीराम ने तुरंत अश्विनीकुमारों से परामर्श किया, जो उस समय के दिव्य चिकित्सक थे। उन्होंने बताया कि लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा केवल "संजीवनी बूटी" से ही संभव है, जो हिमालय में द्रोणागिरी पर्वत पर पाई जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बूटी यदि समय रहते नहीं दी गई, तो लक्ष्मण जी को बचाना असंभव हो जाएगा। इस संकट की घड़ी में हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने का कार्य सौंपा गया।
हनुमान जी अपने महाविक्रम के लिए प्रसिद्ध थे। वे तुरंत आकाश मार्ग से उड़कर हिमालय की ओर निकल पड़े। अपनी तीव्र गति से यात्रा करते हुए, वे शीघ्र ही उत्तराखंड स्थित द्रोणागिरी पर्वत पर पहुँचे। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने देखा कि पर्वत पर कई प्रकार की औषधियाँ थीं, परंतु वे संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए। यह देखकर उन्होंने तुरंत संपूर्ण पर्वत का एक बड़ा हिस्सा उखाड़ लिया और उसे लेकर पुनः आकाश मार्ग से लंका की ओर उड़ चले।
द्रोणागिरी पर्वत उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है, और यह स्थान आज भी इस पौराणिक घटना से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि वहाँ के स्थानीय लोग इस पर्वत को देवता के रूप में पूजते थे। जब हनुमान जी ने इस पर्वत का एक महत्वपूर्ण भाग उठा लिया, तो वहाँ के लोगों को लगा कि उनका आराध्य पर्वत खंडित हो गया है। यही कारण है कि आज भी द्रोणागिरी गाँव के लोग हनुमान जी की पूजा नहीं करते।
यहाँ तक कि द्रोणागिरी गाँव में जब रामलीला का आयोजन किया जाता है, तो उसमें हनुमान जी की भूमिका नहीं होती। यह अपने आप में एक अनूठी परंपरा है, जो इस घटना से जुड़ी हुई है। हालाँकि, वहाँ के लोग भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं, परंतु हनुमान जी को लेकर उनके मन में अब भी नाराजगी बनी हुई है।
जब हनुमान जी संजीवनी पर्वत का टुकड़ा लेकर लंका पहुँचे, तब वैद्य सुषेण ने तुरंत औषधि तैयार की और लक्ष्मण जी को दी। संजीवनी बूटी के प्रभाव से लक्ष्मण जी को तुरंत होश आ गया और वे पुनः युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। इस प्रकार, हनुमान जी के इस महान कार्य ने न केवल लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा की, बल्कि रामायण के युद्ध की दिशा को भी बदल दिया।
आज भी वैज्ञानिक और इतिहासकार इस विषय पर शोध कर रहे हैं कि द्रोणागिरी पर्वत पर पाई जाने वाली दुर्लभ औषधियाँ कौन-कौन सी हैं और क्या उनमें सच में संजीवनी जैसे गुण हैं? कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह बूटी एक प्रकार की दिव्य जड़ी-बूटी थी, जो केवल कुछ ही विशेष परिस्थितियों में पाई जाती थी और इसका रहस्य अब तक पूरी तरह से उजागर नहीं हो पाया है।
हनुमान जी द्वारा द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उठाकर लाने की यह घटना हमें न केवल उनकी असीम शक्ति का परिचय देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि संकट की घड़ी में वे कितने कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित थे। यह घटना भारतीय संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें निःस्वार्थ सेवा और भक्ति का संदेश देती है।
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