अंगिरा महर्षि (Angira Maharshi)
हिंदू धर्म वेदों का काफी महत्व है। इन वेदों में हजारों मंत्र हैं, जिनकी रचना में कई महर्षियों का योगदान रहा है। इन्हीं महर्षियों में से एक हैं अंगिरा महर्षि। पुराणों में अंगिरा जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र बताया गया है। इनके गुण भी ब्रह्मा जी के समान थे। इन्हें प्रजापति भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में सप्त ऋषियों का काफी योगदान माना जाता है। इन सप्तर्षियों में वशिष्ठ, विश्वामित्र व मरीचि आदि के साथ अंगिरा जी का भी नाम शामिल है। अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना व मंत्रशक्ति के लिए विशेष रूप से प्रतिष्ठित अंगिरा जी आदिपुरूषों में से एक हैं।
महर्षि अंगिरा की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार की बात है, तपस्या व उपासना से महर्षि अंगिरा जी का तेज और प्रभाव अग्नि की अपेक्षा बहुत बढ़ गया था। उस समय जल में रहकर तपस्या कर रहे अग्निदेव ने जब यह देखा कि अंगिरा जी के तपोबल के सामने उनकी तपस्या और प्रतिष्ठा छोटी पड़ रही है तो वह निराश हो गए।
अग्निदेव महर्षि अंगिरा जी के पास गए और कहा- आप प्रथम अग्नि हैं, आपके तेज के सामने मेरा तेज कुछ भी नहीं, अब मुझे कोई अग्नि नहीं कहेगा। अग्निदेव की बात सुन महर्षि अंगिरा ने सम्मानपूर्वक उन्हें देवताओं को हवि पहुंचाने का कार्य सौंपा। साथ ही पुत्र के रूप में अग्नि का वरण किया, जिसके बाद अग्निदेव ही बृहस्पति नाम से अंगिरा जी के घर पुत्र रूप में जन्में। महर्षि के 2 पुत्र और थे, उतथ्य व महर्षि संवर्त। महर्षि अंगिरा जी की विशेष महिमा है। ये मंत्रद्रष्टा, योगी, संत व महान भक्त हैं। इनकी 'अंगिरा-स्मृति' में बहुत ही अच्छे उपदेश व धर्माचरण की शिक्षा के बारे में बताया गया है।
महर्षि अंगिरा के महत्वपूर्ण योगदान
- महर्षि अंगिरा जी ने ही सबसे पहले अग्नि उत्पन्न की थी।
- अंगिरा जी ने धर्म व राज्य की व्यवस्था पर बहुत काम किया।
- हिंदू धर्म में मौजूद वेदों की रचना में महर्षि अंगिरा जी का बड़ा योगदान रहा है।
- अंगिरा जी ने सृष्टि के आदि काल में वेद ज्ञान को सुनने, समझने व आदिपुरूष ब्रह्मा जी को समझाने का कार्य किया।
- भृगु, अत्रि सहित अन्य ऋषियों ने महर्षि अंगिरा जी से ज्ञान प्राप्त किया।
- अंगिरा जी ने वेदों की रचना के साथ अपने नाम से अंगिरा स्मृति की भी रचना की, जिसमें उपदेश व धर्माचरण की शिक्षा दी गई है।
- अग्निदेव ने ही बृहस्पति रूप में अंगिरा जी के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया था, जोकि देवताओं के गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए थे।
अंगिरा महर्षि और शिव (Angira Maharshi and Lord Shiva)
शिव पुराण की कथा के अनुसार, वराहकल्प के 9वें द्वापर में महादेव ने ऋषभ नाम से भी अवतार लिया, उस समय उनके पुत्र के रूप में महर्षि अंगिरा थे। एक बार की बात है कि भगवान श्रीकृष्ण ने व्याघ्र पाद ऋषि के आश्रम में महर्षि अंगिरा से पाशुपत योग प्राप्त करने के लिए कड़ी तपस्या की थी।
महर्षि अंगिरा से जुड़े रहस्य
- अंगिरा जी की पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति थीं, जिनसे इनका वंश आगे बढ़ा।
- भगवान शिव ने व्यासा अवतार लिया, उनमें वराह कल्प में वेदों के विभाजन, पुराणों के प्रदर्शन व ज्ञान मार्ग बताने वाले अंगिरा महर्षि ही थे। तब इनका नाम व्यासा अवतार के कारण व्यास था।
- ऋषभ अवतार में महादेव के पुत्र के रूप में अंगिरा जी ही थे।
- भगवान श्री कृष्ण ने महर्षि अंगिरा जी से पाशुपत योग की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी।
- एक कथा के अनुसार, अंगिरा जी को अग्नि का पुत्र बताया जाता है।