आत्रेय ऋषि

आत्रेय ऋषि

जानें आत्रेय ऋषि की जीवनी


आत्रेय ऋषि कौन थे ? (Who was Atreya Rishi?)

आत्रेय ऋषि जिन्हें दत्तात्रेय के नाम से भी जाना जाता है अत्रि ऋषि के वंशज और महान ऋषि थे। दत्तात्रेय जी को भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का अंश माना जाता है। इसलिए सनातन धर्म में दत्तात्रेय का विशिष्ट स्थान है और उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाता है। आत्रेय ऋषि के अंदर गुरु और ईश्वर दोनों का स्वरूप निहित होता है। मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय केवल स्मरण मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय तीन मुखधारी है। इनके छह हाथ हैं, इन्होंने प्रकृति, पशु पक्षी और मानव समेत अपने चौबीस गुरु बनाए थे। भगवान आत्रेय का पूजन और मंत्र का जाप करने से सुख-समृद्धि मिलती है।

आत्रेय ऋषि का जीवन परिचय (Biography of Atreya Rishi)

पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के निर्माणकर्ता ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पत्नियां सरस्वति, लक्ष्मी और सती माता को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत गर्व था। उस समय नारद मुनि ने तीनों देवियों को माता अनुसुइया के बारे में बताया और कहा कि अनुसुइया के सामने आपका सतीत्व बहुत कम है। तीनों देवियों ने नारद मुनि की बात सुनकर अपने-अपने पतियों से कहा कि वे अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की परिक्षा लें। तीनो देवियों के ज़िद की वजह से ब्रह्मा, विष्णु और महेश साधुवेश में अनुसुइया की परीक्षा लेने पहुंचे। तीनों साधुओं ने अनुसुइया से निर्वस्त्र होकर भिक्षा देने के लिए कहा। सती अनुसुइया ने अपने तप बल से तीनों साधुओं को छ:-छ: माह का बच्चा बना दिया और फिर उन्हें स्तनपान कराया और अपने पास ही रख लिया। काफी वक्त तक जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश अपनी पत्नियों के पास नही पंहुचे तब तीनों देवियां अनुसुइया के पास पहुंची और उनसे प्रार्थना की “कि तीनों देवों फिर से उनका वास्तविक स्वरूप लौटा दें। माता अनुसुइया तीनों देवियों की प्रार्थना स्वीकार कर तीनों बालकों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप लौटा दिया। तीनों देवताओं ने अनुसुइया से प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वर दिया। बाद में अनुसुइया के गर्भ से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, शिव जी के अंश से दुर्वासा और विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। दत्तात्रेय जी की पत्नी श्रीमति लक्ष्मी जी थीं। दत्तात्रेय जी के सुपुत्र निमि थे और निमि के पुत्र श्रीमान थे।

आत्रेय ऋषि के महत्वपूर्ण योगदान (Important contributions of Atreya Rishi)

भगवान दत्त के नाम पर ही दत्त संप्रदाय उदय हुआ था। दक्षिण भारत में दत्तात्रेय भगवान के कई प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। ऐसी मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय की विधिवत पूजन और व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। श्री दत्तात्रेय जी श्री विद्या के परम आचार्य हैं। तन्त्र के क्षेत्र में श्री विद्या रहस्य अद्भूत है, जिससे संपूर्ण जीवन में श्री से सम्पन्न हुआ जा सकता है। श्री दत्तात्रेय जी श्री विद्या के परम आचार्य हैं।

आत्रेय ऋषि से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Atreya Rishi)

दत्तात्रेय जी भगवान विष्णु के अवतार हैं। श्रीमद्भभगवत के अनुसार पुत्र प्राप्ति की कामना करते हुए महर्षि अत्रि ने व्रत किया था जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु ने महर्षि अत्रि से कहा, ‘दत्तो मयाहमिति यद् भगवान्‌ स दत्तः’ अर्थात मैंने अपने-आपको तुम्हें दे दिया। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने ही अत्रि के पुत्र रूप में जन्म लिया और दत्त कहलाए। अत्रिपुत्र होने से ये आत्रेय के नाम से जाने जाते हैं। दत्त और आत्रेय के संयोग से यह दत्तात्रेय के नाम से प्रसिद्ध हुए।

चन्द्र और दुर्वासा जन्म के कुछ समय बाद माता पिता से अपने संकल्पित कार्य में रत होने की आज्ञा मांगी। यह सुनकर महर्षि अत्रि और देवी अनसूया को बहुत दुख हुआ लेकिन चन्द्र और दुर्वासा ने आश्वासन दिया कि हम अपने अंश को दत्त के पूर्ण अंश में छोड़ जाते हैं। दत्त ही दत्तात्रेय के नाम से जाने गए और तीनों देवता एक स्वरूप आ गए। यह सुन माता पिता भी अति आनंदित हो गए। दत्त ने कई वर्षो तक आश्रम में रहकर एक दिन अपने माता पिता से तीर्थाटन की अनुमति मांगी। माता-पिता थोड़ा दुःखी हुए। तब दत्तात्रेय ने कहा कि आप जब मुझे स्मरण करेंगे उसी क्षण मैं उपस्थित हो जाऊंगा।

भगवान दत्तात्रेय आठ मास भ्रमण किया और चार महीने तक तपस्या की। राजस्थान के आबू पर्वत पर गुरू शिखर पर वे जब तपस्या कर रहे थे तब उनके माता पिता ने उनको याद किया तो दत्तात्रेय उनको भी गुरु शिखर पर ले आए। यहां दत्तात्रेय जी के द्वारा स्थापित "श्री भसमेश्वर महादेव" जी का प्राचीन शिव लिंग है। यहां यह मान्यता है कि जिनकी संतान नहीं होती है उन्हें यहां के दर्शन से लाभ मिल जाता है।

यह मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय जी ने अनेक विद्याएं दी थी। दत्तात्रेय जी श्री विद्या के परम आचार्य होने के कारण कश्यप ऋषि ने परशुराम जी को श्री दत्तात्रेय जी की शरण में जाने के लिए कहा था।

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