कपिल मुनि कौन थे?
हिंदू धर्म में कपिल मुनि का नाम तो सभी ने सुना होगा। इन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहा जाता है। पुराणों में इन्हें अग्नि का अवतार व ब्रह्मा जी का मानस पुत्र भी बताया गया है। इनकी माता का नाम देवहुती व पिता का नाम कर्दम था। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की कामना की थी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने स्वयं उनके गर्भ से जन्म लिया। कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे, उन्हें प्राचीन ऋषि भी कहा गया।
कपिल मुनि के समय व जन्म स्थान के बारे में पूर्ण निश्चय नहीं किया जा सका है। पुराणों व महाभारत में इनका भी उल्लेख है। कहते हैं कि हर कल्प के आदि में कपिल मुनि जन्म लेते हैं। इन्हें जन्म से ही सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं, इसलिए इन्हें आदिसिद्ध या आदिविद्वान भी कहा जाता है। कपिल मुनि सांख्यशास्त्र यानि तत्व पर आधारित ज्ञान के प्रवर्तक थे। कुछ लोग इन्हें अनीश्वरवादी भी मानते हैं, लेकिन गीता में कपिल जी को श्रेष्ठ मुनि कहा गया है। इन्होंने ही सबसे पहले विकासवाद का प्रतिपादन किया और संसार को एक क्रम के रूप में देखने का कार्य किया।
कपिल मुनि का जीवन परिचय
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र महर्षि कर्दम को सृष्टि को बढ़ाने का आदेश दिया। जिसके बाद कर्दम बिन्दुसर तीर्थ के पास जाकर कड़ी तपस्या में लीन हो गए। कहते हैं उस समय तप ही मनुष्य की सभी इच्छाओं की पूर्ति का महत्वपूर्ण साधन था। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान नारायण प्रकट हुए और उन्होंने महर्षि से कहा– “महाराज मनु की कन्या देवहूति तुम्हारे अनुरूप योग्य पत्नी सिद्ध होगी। वह कन्या तुम्हारे उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होगी। जब महाराज मनु अपनी पुत्री देवहूति को लेकर तुम्हारे आश्रम आएं तब तुम उन्हें देवहूति से विवाह करने की स्वीकृति दे देना।” प्रभु श्री हरि ने महर्षि कर्दम से कहा कि कालान्तर में मैं स्वयं तुम्हारे माध्यम से देवहूति के गर्भ से अवतार लूंगा और संसार को सांख्यशास्त्र और भक्ति का उपदेश दूंगा।
एक दिन महाराज मनु अपनी पुत्री के साथ महर्षि कर्दम के आश्रम पर आए और महर्षि का देवहूति के साथ विवाह सम्पन्न हो गया। विवाह के बाद भी महर्षि कर्दम अपनी तपस्या में ही लगे रहे। उनकी पत्नी देवहूति आश्रम व महर्षि की सेवा में दिन रात लगी रहती थी। राजकन्या से वह अब वल्कलधारिणी तपस्विनी बनकर रह गई। उनकी पति भक्ति और सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि ने उनसे कहा, हे कल्याणी! तुमने मेरी सेवा में अपने-आप को सुखा डाला, मैं तुमसे प्रसन्न हूं, मैं तुम्हारी कौन सी इच्छा पूरी कर सकता हूं? देवहूति ने संतान प्राप्ति की कामना जाहिर की। जिसके बाद देवहूति ने 9 पुत्रियों को जन्म दिया।
एक दिन महर्षि कर्दम में पूर्ण वैराग्य का उदय हुआ, जिससे उन्होंने अकेले ही तप के लिए वन जाने का फैसला किया। यह सुन देवहूति ने व्याकुल होकर उनसे कहा- देव! मैं इन्द्रियों के विषय में मूढ़ बनी रही हूं। मैं आपके प्रभाव से अनभिज्ञ रही, फिर भी आप जैसे महापुरुष का संग कल्याणकारी होना चाहिए। प्रभु मेरे उद्धार का मार्ग बताने की कृपा करें। पत्नी की यह बात सुनकर महर्षि बोले- भद्रे आप परेशान न हों, तुम्हारे गर्भ से परम पुरुष प्रकट होने वाला है। वे तुम्हें तत्वज्ञान का उपदेश देंगे। मैं उनका दर्शन करके ही यहां से जाऊंगा। उसके बाद समय आने पर भगवान कपिल ने देवहूति के गर्भ से अवतार लिया, जिनके दर्शन करने के बाद आदेश लेकर महर्षि तप के लिए वन में चले गए।
भगवान कपिल ने अपनी माता देवहूति को तत्वज्ञान का उपदेश देते हुए कहा- “यह मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण होता है। मनुष्यों को सभी ओर से अपने मन को खींचकर भगवान के स्वरूप में लगाना चाहिए।” माता को भक्ति व सांख्य शास्त्र का उपदेश देकर भगवान कपिल समुद्र तट पर चले गए, जहां समुद्र ने उन्हें अपने अंदर स्थान दिया। माता देवहूति भी अपने पुत्र का उपदेश सुनकर भगवान में अपना मन लगाकर मुक्त हो गईं।
भगवान कपिल द्वारा दिए सांख्यशास्त्र के उपदेश का उद्देश्य तत्वज्ञान के द्वारा मोक्ष प्राप्त करना है। ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञकर्म के माध्यम से अपवर्ग की प्राप्ति बताई गई है। कर्मकांड से हटकर ज्ञानकाण्ड को महत्व देना सांख्य की सबसे बड़ी विशेषता है। उपनिषदों में ज्ञान को कर्म से ऊपर यानी श्रेष्ठ माना गया है।
कपिल मुनि के महत्वपूर्ण योगदान
- भगवान कपिल जी ने ही सबसे पहले ध्यान और तपस्या का मार्ग बतलाया था।
- कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रवर्तक थे।
- कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख 12 आचार्यों में से एक हैं।
- कपिल मुनि के नाम से कई ग्रंथ प्रसिद्ध हुए हैं, जैसे- सांख्य सूत्र, तत्व समास, व्यास प्रभाकर, कपिल स्मृति आदि।
- महाभारत में कपिल मुनि के उपदेश को कपिल गीता के नाम से जाना जाता है।
- कपिल स्मृति इनका धर्मशास्त्र है।
- ज्ञान को साधना का रूप देकर भगवान कपिल ने ही त्याग, तपस्या व समाधि को भारतीय संस्कृति में पहली बार प्रतिष्ठित किया।
कपिल मुनि से जुड़े रहस्य
- कहते हैं कि भगवान कपिल हर कल्प के आदि में जन्म लेते हैं।
- कपिल मुनि के क्रोध से ही राजा सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए थे।
- रणभूमि में भीष्म पितामह द्वारा शरीर त्याग देने के समय वेद व्यास सहित अन्य ऋषियों के साथ कपिल मुनि भी वहां मौजूद थे।
- कपिल मुनि के नाम पर ही कपिलवस्तु नगर बसा है, जहां बुद्ध का जन्म हुआ था।
- कपिल जी का जन्म स्थान कपिलवस्तु और तपस्या स्थल गंगासागर बताया जाता है।
- कहा जाता है कि कपिल मुनि ने साधारण मानव समझकर भगवान राम, सीता व लक्ष्मण जी को अपनी कुटिया से निकाल दिया था, जिसके बाद वे बहुत पछताए थे।