महर्षि गौतम (Maharishi Gautam)
महर्षि गौतम सप्तर्षियों में से एक ऋषि के रूप में जाना जाता है। गौतम ऋषि वैदिक काल के एक महर्षि एवं मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पत्नी अहिल्या थीं जो प्रातःकाल स्मरणीय पंच कन्याओं गिनी जाती हैं। अहिल्या ब्रह्मा की मानस पुत्री थी जो विश्व मे सुंदरता में अद्वितीय थी। भगवान हनुमान की माता अंजनी गौतम ऋषी और माता अहिल्या की पुत्री थी। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने देवताओं द्वारा तिरस्कृत होने के बाद अपनी दीक्षा गौतम ऋषि से पूर्ण की थी।
महर्षि गौतम का जीवन परिचय (Biography of Maharishi Gautam)
अक्षपादो महायोगी गौतमाख्यो मवन्मुनिः। गोदावरी समावेतो, अहल्याः पतिः प्रभुः।।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा मानसपुत्र ऋषि अंगिरा और उनकी पत्नी स्वधा के उत्थ्य नाम का पुत्र हुआ। उतथ्य और ममता से दीर्घतमस नामक पुत्र हुआ। दीर्धतमस व प्रद्वेषी से महर्षि गौतम हुए, जो कि आंगिरस वंश (भारद्वाज ऋषि का संबंध इसी वंश से है) से संबंधित हैं। महर्षि गौतम की पत्नी का नाम अहिल्या था और उनके पुत्रों का नाम वामदेव, नोवस, वाजश्रवस्, शतानंद, शरद्वान था व पुत्री का नाम विजया, अंजनी था। महर्षि गौतम के पुत्र शतानंद जनकपुर के विदेह वंशीय राजा जनक के पुरोहित और राम विवाह के मुख्य पुरोहित भी थे।
पौराणिक कथाओं की माने तो महर्षि गौतम परम तपस्वी एवं संयमी थे, लेकिन एक घटना की वजह से उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को पाषाण बनने का शाप दे दिया था। त्रेता युग में भगवान श्रीराम की चरण-रज से अहिल्या का शापमोचन हुआ, जिससे वह पाषाण से पुन: ऋषि पत्नी बनीं।
बताया जाता है कि ब्रह्माजी ने श्रेष्ठ गुणों से अहिल्या को बनाया, उसके बाद वे देवी अहिल्या की देखभाल के लिए एक योग्य पुरुष की तलाश में थे। ऋषि गौतम सर्व ज्ञानी और बुद्दिमान भी थे इसलिए ब्रह्माजी ने अहिल्या को युवा होने पर गौतम ऋषि के आश्रम भेज दिया और इस बात का निर्णय किया कि वे देवी अहिल्या की शादी किसी साधु से ही करेंगे।
ब्रह्माजी ने देवी अहिल्या की शादी के लिए शर्त रखी कि जो कोई पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा, उसी का विवाह अहिल्या से होगा। ऐसा सुनकर सभी देव तथा ऋषि पृथ्वी के चक्कर लगाने लगते हैं। गौतम ऋषि की कामधेनु गाय उस समय बछड़े को जन्म दे रही होती है तो वे इसलिए पृथ्वी के चक्कर लगाने नहीं जाते हैं। एक जीव के प्रति गौतम ऋषि का त्याग व प्रेम देख देवी अहिल्या ने उनसे विवाह करने की इच्छा जताई और ब्रह्माजी ने उनका विवाह गौतम ऋषि से करवा दिया।
महर्षि गौतम के महत्वपूर्ण योगदान (Important contributions of Maharishi Gautam)
महर्षि गौतम जिन्हें 'अक्षपाद गौतम' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है, 'न्याय दर्शन' के प्रथम प्रवक्ता माने जाते हैं। इतिहासकारों के अनुसार महर्षि गौतम का आश्रम मिथिला/ब्रह्मगिरि में है। न्यायसूत्र वैदिकवृत्ति, न्याय धर्मसूत्र, न्यायदर्शनम् गौतम ऋषि द्वारा रचित पुस्तकें थीं। महर्षि गौतम को न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक, त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना और दक्षिण भारत में गंगा अवतरण का श्रेय दिया जाता है।
त्रयंबकेशवर (नासिक) गौतम ऋषि की तपोभूमि रही है। यहां ब्रह्मगिरि पर्वत पर ही गंगा (गोदावरी), भागीरथी गंगा से पहले अवतरित होकर गौतम को गौ हत्या पाप से मुक्त किया था। इसी पर्वत पर ब्रह्मा ने शिव की अराधना की थी। ब्रह्मगिरि पर्वत पर गौदावरी के उद्गम स्थल पर महर्षि गौतम की मूर्ति है। जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करता है तो यहां कुम्भ मेले का आयोजन होता है। यहां के प्रभातीर्थ में (कुशावर्त तीर्थ) नहाकर गौतम पाप मुक्त हुए। इसी गंगा को गोदावरी व गौतमी गंगा कहते है।
महर्षि गौतम से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Maharishi Gautam)
गौतम ऋषि की अर्धांगनी अहिल्या बहुत खूबसूरत थी। उनकी खूबसूरती की चर्चा आकाश, पाताल और पृथ्वी लोक में थी। स्वंय स्वर्ग नरेश इंद्र भी गौतम ऋषि की धर्मपत्नी अहिल्या पर आकर्षित हो गए थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम में नहीं थे तब इंद्र ने माया के जरिए ऋषि गौतम का रूप धारण कर आश्रम में प्रवेश कर लिया। अहिल्या राजा इंद्र को पहचान नहीं पाई। तभी इंद्र ने छल के जरिए अहिल्या से प्रेम भाव प्रस्तुत किया। अहिल्या राजा इंद्र पर मोहित हो गई और प्रेम भाव में डूब गई। तभी अचानक से गौतम ऋषि आश्रम आ पहुंचे। आश्रम में हूबहू गौतम ऋषि देखकर समझ गए। यह कोई मायावी है। उसी वक्त गौतम ऋषि ने क्रोध में मायावी इंद्र को नपुंसक होने का श्राप दे दिया। साथ ही धर्मपत्नी अहिल्या को पत्थर रूप में परिवर्तित कर दिया। गौतम ऋषि के श्राप से स्वर्ग के देवता चिंतित हो उठे। गौतम ऋषि की धर्मपत्नी अहिल्या ने क्षमा याचना की। तब गौतम ऋषि ने कहा-त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम आकर अपने चरणों से तुम्हें स्पर्श करेगा। तब जाकर तुम्हें मुक्ति मिलेगी। त्रेता युग में श्रीराम के चरणों के स्पर्श करने से अहिल्या को सजीव रूप प्राप्त हुआ।
शास्त्रों के अनुसार एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्नियां किसी बात पर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं और ईर्ष्या वश सभी ने अपने पतियों से वचन लिया कि वे सब गौतम ऋषि का अपमान करेंगे। सभी ब्राह्मणों ने भगवान गणेश की आराधना शुरू की, ब्राह्मणों की आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उनसे वर मांगने को कहा। उन ब्राह्मणों ने कहा प्रभु किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दीजिए। गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। तब गणेश जी ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर फसल खाने लगे। देववश गौतम वहां पहुंचे और तिनकों की मुठ्ठी से उसे हटाने लगे, तिनकों के स्पर्श से गौ माता पृथ्वी पर गिर पड़ी और ऋषि के सामने ही मर गई। तभी सभी ब्राह्मण एकत्रित गौतम ऋषि पर गौ हत्यारे होने का आरोप लगाने लगे। तब गौतम ऋषि ने उन ब्राह्मणों से गौ हत्या का प्रायश्चित पूछा। ब्राह्मणों ने गौतम ऋषि से कहा कि तुम अपने पाप को सर्वत्र बताते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करो, फिर लौटकर यहां एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद इस ब्रह्मगिरि पर सौ बार घूमों, तभी तुम्हारी शुद्धि होगी। यदि यह न कर पाओ तो यहां गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग से भगवान शिवजी की आराधना करो। इसके बाद फिर से गंगा जी में स्नान करके पुनः सौ घड़ों से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार हगा।
गौतम ऋषि ने इस प्रकार कठोर प्रायश्चित किया और भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव प्रकट होकर गौतम ऋषि से वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने भोलेनाथ से कहा कि आप मुझे गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दीजिए। भगवान शिव ने कहा गौतम तुम सर्वदा निष्पाप हो। तुमने गौ की हत्या नहीं की। बहुत सारे ऋषि मुनियों और देवगणों एवं गंगा ने वहां उपस्थित होकर ऋषि गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा वहीं पर निवास करने की प्रार्थना की। देवों के प्रार्थना करने पर भगवान भोलेनाथ वहीं गौमती-तट पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।