महर्षि वेदव्यास कौन थे? (Who was Maharishi Vedvyas?)
हिंदू धर्म की रक्षा व उसे आगे बढ़ाने में कई महान ऋषियों ने योगदान दिया। ऐसे ही एक ऋषि थे महर्षि वेदव्यास। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। अलौकिक शक्ति सम्पन्न महापुरुष वेदव्यास जी के पिता का नाम महर्षि पराशर और माता सत्यवती थीं। इनका जन्म एक द्वीप के अंदर हुआ था, वर्ण श्याम था। शुरुआत में वेदव्यास जी को कृष्णद्वैपायन भी है। इन्होंने वेदों का विभाजन किया था, इसलिए इन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा।
महर्षि वेदव्यास जी महान ग्रंथ महाभारत के रचयिता के साथ उन घटनाओं के भी साक्षी रहे हैं जो घटित हुई हैं। असल में महाभारत में व्यास जी की भी एक अदद भूमिका है। ये उन मुनियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने साहित्य और लेखन के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता को यथार्थ और ज्ञान का खजाना दिया है।
महर्षि वेदव्यास का जीवन परिचय (Biography of Maharishi Vedvyas)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुरु वशिष्ठ के पुत्र शक्ति और शक्ति के पुत्र पराशर हुए। पराशर स्वयं सिद्ध महर्षि थे, जिन्होंने दाशराज की कन्या सत्यवती से वेदव्यास को जन्म दिया था। जन्म के समय वेदव्यास जी का वर्ण श्याम था, इसलिए इनका नाम कृष्ण हुआ। इनका जन्म यमुना नदी के द्वीप में हुआ था, इसलिए इन्हें कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना गया। आगे चलकर कृष्ण द्वैपायन ने वेदों का व्यास अर्थात् विभाजन, विस्तार व सम्पादन किया, इस कारण मूल नाम से ये वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनकी पत्नी का नाम आरुणी था और पुत्र महान बालयोगी शुकदेव थे।
आदि पर्व की कथा के अनुसार, जन्म के बाद ही कृष्ण द्वैपायन ने माता सत्यवती से तपस्या के लिए वन जाने की इच्छा जाहिर की, लेकिन माता इसके लिए राजी नहीं थी। तब पुत्र ने वचन दिया कि उनके स्मरण करते ही वे योग शक्ति से तत्क्षण होकर उनके सामने आ जाएंगे और फिर मां की आज्ञा लेकर कृष्ण द्वैपायन तपस्या में लीन हो गए। हालांकि, वे स्वयं ईश्वर के अवतार थे, इसलिए तप से परे स्वयं सिद्ध थे, लेकिन लोक कल्याण के लिए उन्होंने तपस्या का सुंदर आदर्श रखा।
महर्षि वेदव्यास के महत्वपूर्ण योगदान (Important contributions of Maharishi Vedvyas)
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कथा के अनुसार, साधना के दौरान कृष्ण द्वैपायन ने पाया कि हर युग में धर्म का एक पद लुप्त हो रहा है, जिसके बाद उन्होंने वेदों का विस्तार करने का निर्णय लिया। आमजनों को वेद समझने में आसानी हो, इसलिए महर्षि ने अपने वैदिक ज्ञान से वेदों को चार हिस्सों में विभाजित कर दिया। वेदों को आसान बनाने के लिए समय-समय पर इसमें संशोधन भी किए जाते रहे हैं। कथाओं के अनुसार, प्रत्येक द्वापर युग में भगवान विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन, अश्वत्थामा आदि 28 वेदव्यास हुए। कहा जाता है कि वेदों को 28 बार विभाजित किया गया।
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महर्षि वेदव्यास महाभारत के सबसे प्रमुख, प्रभावी, पूज्य व चमत्कारी पात्र हैं। संसार के किसी ग्रंथ में ऐसा दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल है जिसका लेखक स्वयं अपनी कृति का एक प्रमुख पात्र हो। महर्षि वेदव्यास ने स्वयं जगतपिता ब्रह्मा की आज्ञा से महाभारत की रचना की थी। उन्होंने भगवान गणेश जी को महाभारत की पूरी कथा सुनाई थी, जिसे गणेश जी ने लिखा था। इस प्रकार व्यास जी किसी महाग्रंथ के संसार के पहले आशुवक्ता कहलाते हैं और गणेश जी पहले आशुलिपिक।
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मां सत्यवती के कहने पर वेदव्यास जी ने महाभारत काल में विचित्रवीर्य की रानियों के साथ और एक दासी के साथ भी नियोग किया, जिससे पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ।
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महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत के अलावा श्रीमद् भागवतम् की रचना भी की थी, जिसे इनके महान पुत्र शुकदेव ने राजा परीक्षित को सुनाकर मृत्यु के श्राप से मुक्ति दिलाई थी।
महर्षि वेदव्यास से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Maharishi Vedvyas)
- कहते हैं कि वेदव्यास जी का जन्म नेपाल में स्थित तानहु जिले के दमौली में हुआ था। कहा जाता है कि जिस गुफा में बैठक व्यास जी ने महाभारत की रचना की थी, वह नेपाल में अब भी मौजूद है।
- महर्षि व्यास जी को भगवान विष्णु का 18वां अवतार माना जाता है।
- व्यास जी का जन्म त्रेता युग के अंत में हुआ था, वह पूरे द्वापर युग तक जीवित रहे। कहते हैं कि उन्होंने कलयुग के शुरू होने पर प्रयाण किया।
- महर्षि व्यास पितामह भीष्म के सौतेले भाई थे। क्योंकि व्यास जी की मां सत्यवती ने हस्तिनापुर के राजा शांतनु से विवाह किया था और शांतनु भीष्म के पिता थे।
- बदरीवन में निवास करने के कारण व्यास जी को बादरायण भी कहा जाता है।
- महाभारत युद्ध की आहट को महर्षि वेदव्यास जी ने दुर्योधन के जन्म के साथ ही सुन ली थी। उनकी ही कृपा से धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी।
- महर्षि वेदव्यास जी महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई है। कहते हैं कि उनके आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक पहुंचती थी। यही नहीं, वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते रहते थे।
- कुछ कथाओं के अनुसार, कालपी में यमुना के किसी द्वीप में व्यास जी का जन्म हुआ था।
- संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि जी के बाद वेदव्यास ही सर्वश्रेष्ठ कवि कहलाए जाते हैं। इनके लिखे काव्य आर्ष काव्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। महाभारत के द्वारा महर्षि वेदव्यास जी का उद्देश्य युद्ध का वर्णन करना नहीं, बल्कि इस भौतिक जीवन की नि:सारता को दिखाना है।
- कहते हैं कि महर्षि वेदव्यास का आश्रम चीन के उस पार सुदूर मेरु पर्वत पर था। इसका संकेत महाभारत की उस कथा से भी मिलता है जिसमें उनके पुत्र शुकदेव उस आश्रम से चलकर ज्ञान की प्राप्त के लिए राजा जनक के पास मिथिलापुरी आए थे।