शुकदेव जी

शुकदेव जी

जानिएं शुकदेव क्यों गए थे राजा जनक के पास


शुकदेव मुनि कौन थे ? (Who was Sukhdev Muni?)

हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत पढ़ने व सुनने का विशेष महत्व है। ऋषि वेदव्यास जी के पुत्र शुकदेव मुनि ने पहली बार राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत की कथा सुनाई थी, जिससे उन्हें मृत्यु के श्राप से मुक्ति मिली थी और वह भगवान के परमधाम पहुंचे थे। यहीं से भागवत सुनने का प्रचलन भी शुरू हुआ।

शुकदेव महाभारत काल के मुनि थे। ये बहुत कम उम्र में ही ज्ञान प्राप्ति के लिए वन में चले गए थे और ब्रह्मलीन हो गये थे। इनके पिता महाभारत के रचयिता ऋषि वेदव्यास व माता का नाम वटिका था। बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी होगी कि शुकदेव मुनि एक शुक यानि तोता थे। ये 12 वर्ष तक भगवान शिव के डर से अपने मां के गर्भ में रहे थे। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। शुकदेव ने अपने पिता वेदव्यास जी से श्रीमद् भागवत का ज्ञान प्राप्त किया था। पिता से ही इन्होंने महाभारत पढ़ी थी, जिसे बाद में देवताओं को सुनाया था।

शुकदेव जी का जीवन परिचय (Biography of Sukhdev Muni)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, शुकदेव के जन्म के बारे में कई कथाएं मिलती हैं। एक कथा के अनुसार, शुकदेव द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण व राधा जी के अवतार के समय राधा के साथ खेलने वाले शुक थे। वहीं, कहीं इन्हें भगवान शिव द्वारा व्यास जी के तप का वरदान बताया जाता है। कहते हैं कि आज भी शुकदेव मुनि अमर हैं। समय-समय पर अधिकारी पुरुषों को दर्शन देकर उन्हें अपने दिव्य उपदेशों के द्वारा कृतार्थ करते रहते हैं।

कथा के अनुसार, कहा जाता है कि ये महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे। कथा के अनुसार, भगवान शिव माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। इस बीच पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक ने हुंकार भरना शुरू कर दिया। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ कि अमर कथा पार्वती जी नहीं बल्कि एक शुक सुन रहा है तो उन्होंने शुक को मारने के लिए अपना त्रिशूल छोड़ दिया।

शुक भगवान शिव से जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा, भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम आ पहुंचा और सूक्ष्म रूप धारण करके व्यास जी की पत्नी के मुख के द्वारा उनके गर्भ में जाकर छुप गया। कहते हैं कि भगवान शिव के भय से शुक 12 वर्ष तक गर्भ से बाहर नहीं निकला। भगवान श्रीकृष्ण ने जब स्वयं आकर शुक को आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर उसके ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी वह माता वटिका के गर्भ से बाहर निकले और व्यास जी के पुत्र कहलाए।

शुकदेव जी के महत्वपूर्ण योगदान (Important contribution of Sukhdev Muni)

शुकदेव ने अपने पिता वेद व्यास जी से श्रीमद् भागवत महापुराण के श्लोकों का विधिवत अध्ययन किया। जिसके बाद उन्होंने महाराज परीक्षित को इसकी कथा सुनाई थी। कहते हैं परीक्षित जी को मृत्यु का श्राप मिला था, श्रीमद्भागवत की कथा के दिव्य प्रभाव से उन्होंने मृत्यु को भी जीत लिया और भगवान के मंगलमय धाम के सच्चे अधिकारी बने। इसके अतिरिक्त शुकदेव ने अपने पिता वेदव्यास जी से महाभारत भी पढ़ा था, जिसे इन्होंने बाद में सभी देवताओं को सुनाया था।

शुकदेव जी से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Shukdev ji)

पौराणिक कथा के अनुसार, शुकदेव मुनि जन्म लेते ही श्रीकृष्ण व माता-पिता को प्रणाम करके तपस्या के लिये वन में चले गए थे। हालांकि, व्यास जी की इच्छा थी कि शुकदेव श्रीमद्भागवद् का अध्ययन करें। शुकदेव के वन में जाने के बाद व्यास जी ने भागवत का एक श्लोक बनाकर अपने शिष्यों को रटा दिया। शिष्य रोजाना उस श्लोक को गाते हुए वन में लकड़ियां लेने जाते थे। एक दिन शुकदेव ने शिष्यों के मुख से वह श्लोक सुन लिया, जिसके बाद वे श्री कृष्ण लीला के आकर्षण से बंधकर दोबारा अपने पिता श्री व्यास जी के पास लौट आए और श्रीमद्भागवत महापुराण के सभी श्लोकों का विधिवत अध्ययन किया।

कहते हैं कि पिता वेदव्यास जी के आदेश पर शुकदेव परम तत्त्वज्ञानी और माता सीता के पिता महाराज जनक के पास गए थे। जनक जी की कड़ी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर शुकदेव ने ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त किया था। कहा जाता है कि शुकदेव जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। कहते हैं कि एक बार देवलोक की अप्सरा रंभा शुकदेव से आकर्षित हो गईं और उनसे प्रणय निवेदन किया, लेकिन शुकदेव जी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। रंभा के बहुत कोशिश करने पर शुकदेव ने उससे पूछा- आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं, मैं तो उस सार्थक रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक जैसा लगता है। मैं उस रस को छोड़कर अपने जीवन को निरर्थक नहीं बनाना चाहता। कुछ और रस हो, तो भी मुझे कोई मतलब नहीं है। अगर भगवत प्रेरणा से मुझे दोबारा जन्म लेना पड़ा, तो मैं 9 माह आप जैसी ही माता के गर्भ में रहकर इसका सुख लूंगा।

कुछ कथाओं के अनुसार, 25 साल की उम्र में शुकदेव जी का विवाह स्वर्ग में वभ्राज नाम के सुकर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया वहिंषद जी की पुत्री पीवरी से हुआ था। कूर्म पुराण के अनुसार, शुकदेव मुनि के 5 पुत्र व एक पुत्री थी। हालांकि, कुछ कथाओं के अनुसार, शुकदेव जी के 12 महान तेजस्वी पुत्र व एक पुत्री थी।

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