वामदेव

वामदेव

जानें क्यों हुआ वामदेव और इंद्र के बीच युद्ध


वामदेव कौन थे ? (Who was Vamdev?)

ऋषियों ने मानव जाति का जो कल्याण किया है, उसे भुलाया नहीं जा सकता है। चारों वेदों में बीस हजार से ज्यादा मंत्र हैं। इन्हें गाया और रचा है सात ऋषियों और उनकी कुल परंपरा में हुए अन्य ब्रह्मवेत्ताओं ने। उन सात ऋषियों के नाम हैं वसिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, अत्रि, भारद्वाज, वामदेव और शौनक। जब दिशा बताने वाले यंत्र नहीं थे, तब समुद्री यात्रा के समय दिन में सूर्य और रात में ध्रुव तारे या सात ऋषियों के नाम से विख्यात तारामंडल से दिशा की पहचान की जाती थी। इन्हीं महान ऋषियों में से एक थे वामदेव।

वामदेव का जीवन परिचय ? (Biography of Vamdev?)

वैदिक काल के ऋषि वामदेव परम ज्ञानी थे, वे महर्षि गौतम के पुत्र थे इसीलिए उन्हें गौतम भी कहा जाता था। ऋषि वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा और "जन्मत्रयी" के तत्ववेत्ता हैं। पौराणिक कथाओं की माने तो वामदेव जब मां के गर्भ में थे तभी से उन्हें विगत दो जन्मों का ज्ञान हो गया था। वैदिक उल्लेखानुसार सामान्य मनुष्यों की भांति जन्म न लेने की इच्छा से इन्होंने माता का उदर फाड़कर उत्पन्न होने का निश्चय किया। तब वामदेव की मां ने अपने जीवन को संकट में पड़ा जानकर देवी अदिति से रक्षा की कामना की। अदिति और इंद्र ने प्रकट होकर गर्भ में स्थित वामदेव को बहुत समझाया किंतु वामदेव नहीं माने और वामदेव ने इंद्र से कहा, "इंद्र! मैं जानता हूँ कि पूर्वजन्म में मैं ही मनु तथा सूर्य रहा हूँ। मैं ही ऋषि कक्षीवत (कक्षीवान) था। कवि उशना भी मैं ही था। मैं जन्मत्रयी को भी जानता हूँ। वामदेव कहने लगे जीव का प्रथम जन्म तब होता है जब पिता के शुक कीट माँ के शोणिक द्रव्य से मिलते है। दूसरा जन्म योनि से बाहर निकलकर है और तीसरा जन्म मृत्युपरांत पुनर्जन्म है। यही प्राणी का अमरत्व भी है।"

वामदेव का महत्वपूर्ण योगदान (Important contribution of Vamdev)

वामदेव ने सामगान (अर्थात् संगीत) के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया और वे जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरतनाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों साल पहले ऋषि द्वारा लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की जानकारी प्राप्त होती है।

वामदेव से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Vamdev)

एक कथा है कि एक बार इंद्र ने युद्ध के लिए वामदेव को ललकारा था। वामदेव ने इंद्रदेव की चुनौती को स्वीकार करते हुए युद्ध के लिए हाँ बोल दिया। तब वामदेव और इंद्रदेव के बीच भीषण युद्ध हुआ। कई दिनों तक चले इस युद्ध में वामदेव ने इंद्रदेव को परास्त कर दिया और इंद्रदेव को बंदी बना लिया, जिसके बाद सभी देवी-देवताओं ने वामदेव से इंद्रदेव को मुक्त करने की मांग की। इसके बाद वामदेव ने देवताओं से इन्द्रदेव को छोड़ने के लिए शर्त रखी। यदि इंद्र उसके शत्रुओं का नाश कर देगा तो वामदेव उन गायों को लौटा देंगे। वामदेव की इस बात से इंद्र क्रोध से तमतमा रहे थे तदुपरांत वामदेव ने इंद्र की स्तुति करके उन्हें शांत कर दिया।

पौराणिक काथा के अनुसार वामदेव हमेशा अपने शरीर पर भस्म लगा कर रखते थे। एक बार एक व्यभिचारी ब्रह्मराक्षस वामदेव को खाने के लिए उनके पास पहुँचा। उसने ज्यों ही वामदेव को पकड़ा, उसके शरीर से वामदेव के शरीर की भस्म लग गई अत: भस्म लग जाने से उसके पापों का शमन हो गया तथा उसे शिवलोक की प्राप्ति हो गई । वामदेव के पूछने पर ब्रह्मराक्षस ने बताया कि वह पच्चीस जन्म पूर्व दुर्जन नामक राजा था। अनाचारों के कारण मरने के बाद वह रुधिर कूप मे डाल दिया गया। फिर चौबीस बार जन्म लेने के उपरांत वह ब्रह्मराक्षस बना।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार वामदेव पर दरिद्रता देवी ने कृपा की जिस वजह से वामदेव के सभी मित्रों ने उनसे मुहँ मोड़ लिया और वे चारों ओर से कष्ट से घिर आये। तब वामदेव के तप, व्रत ने भी उनकी कोई सहायता नहीं की। वामदेव के आश्रम के सभी पेड़-पौधे फलविहीन हो गए । वामदेव ऋषि की पत्नी पर वृद्धावस्था और जर्जरता का प्रकोप हुआ। पत्नी के अतिरिक्त सभी ने वामदेव ऋषि का साथ छोड़ दिया था किंतु ऋषि शांत और अडिग थे।

वामदेव ऋषि के पास खाने के लिए और कुछ भी नहीं था तभी एक दिन वामदेव ने यज्ञ-कुंड की अग्नि में कुत्ते की आंते पकानी आरंभ कीं। तभी एक श्येन पक्षी ने वामदेव से पूछा जहाँ तुम हवन अर्पित करते थे वहां मांस पका रहे हो-यह कौन सा धर्म है?” ऋषि ने कहा, “यह आपदा का समय है जो मैं कर रहा वो धर्म के हिसाब से सही है। वामदेव ने कहा मैंने अपने समस्त कर्म भी क्षुधा को अर्पित कर दिये हैं। आज जब सबसे उपेक्षित हूँ तो हे पक्षी, तुम्हारा कृतज्ञ हूँ कि तुमने करुणा प्रदर्शित की।” श्येन पक्षी वामदेव की करुण स्थिति को देखकर द्रवित हो उठा। इंद्र ने श्येन का रुप त्याग अपना स्वाभविक रुप धारण किया और वामदेव को मधुर रस अर्पित किया। तब वामदेव का कंठ कृतज्ञता से अवरुद्ध हो गया।

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